Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 03
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 373
________________ श्रीसम्यक्त्वसित्तरी. ३६३ धो ले, जेमाटे एमने त्यागी दीधी ले ? अथवा देवांगनाना विलासमां अमा रा जेवीना साहामुं तमे किहां जोशो? ते वचन सोनली राजा चमक्यो अने चंश्लेखानी साहामुंजो जोइने उलखी लीधी, तेवारें कह्यु के ए सर्व तहारां चरित्र जणाय बे. एवं कहेतांज चंश्लेखा आवीने राजाने पगे लागी,अने कर्तुं स्वामी योगणीने वचने में धापनो अपराध कीधो,ते क्षमा करजो. रा जायें चंश्लेखानुं बुझिविज्ञान देखीने पटराणी करी थापी. पनी राजाने पा ताल नुवनें सर्व अंतःपुरनी साथें रमतां थकां हजारो वर्ष व्यतिकम्यां. ___ एकदा उद्यानने विषे अनयंकर सूरि समोसस्या. उद्यानपालकें वधामणी दीधी तेमने यथायोग्य दान देने सर्व सजाइ करी चंश्लेखाने सायें तेडी राजा, वांदवा गयो. वांदीने योग्यस्थानकें बेगे. श्राचार्य धर्मदेशना दीधी. नानाप्रकारनी धर्मदेशनाने अधिकारें गुरु, चंश्लेखाप्रत्ये कहेता हवा, के हे चंश्लेखा! तुं कां प्रतिबोध पामती नथी ? आपणा पूर्वनवें समकेतनां फल पाम्यां जाणी शामाटे प्रमाद करे ? पूर्व सूडीने नवें श्रीशजयती र्थे श्रीषनदेवने आराधी उललितराजानी उपर कोप धरीने.समकेतना वशथी चंदनसारशेठनी तुं सर्वकलानिधान पुत्री थइ. अने वली शहां धर्म पण पामी बो, तो हवे प्रमाद शा माटें करे ले ? एवं गुरुनु वचन सांजली चंश्लेखायें श्रावकनां बार व्रत उच्चस्यां. तथा राजा प्रमुख लोक पण सर्व यथाशक्तियें समकेतादिक व्रत उच्चरी पोत पोताने घेर गयां. ___ एकदा चंइलेखा पर्वतिथियें व्रत पालवाने अर्थे पोताने घेर पोषधशा लायें पोषध सइ करीने निश्चल मेरुनी परें अकंप थर कास्सग्ग करी रही ले. एवामां एक मिथ्यादृष्टि देवी अने बीजी सम्यग्दृष्टि देवी ने ते मने परस्पर प्रीति , तेमां सम्यग्दृष्टि देवीये श्रीजिनधर्मनी प्रशंसा करी अने जिनधर्मना पालनारा साधुन्नी दृढतातो अत्यंत श्रेय ले, परंतु श्राव क श्राविकामां पण धैर्यता संबंधी वखाण करतां वर्तमानकालें चंश्लेखा नी धीरज वखाणी ते सांगली मिथ्यादृष्टि देवी चंश्लेखा पासें थावी. रा दलनुं रूप विकू:, जाणे पाहाडने फाडी नाखशे, एवा महोटा बरा हा थमांहे लइ महोटे सादें बोलती हवी के या तहारा पौषध कानस्सग्ग प्र मुख मूकी चरवला मुहपत्तिने नाखी दश्ने था अमारा पगनी पूजा कर, नहींकां तुमने एकज कवलें पाखीने आखी महारा मुखमांहे उतारीश. एवी

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