Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 5
________________ अंक ११] डाकर गौर और जैन समाज । ३२७ जैन व्यक्ति या समाजके पत्रकी ओरसे लिखा है कि हिन्दु धर्मसे विरोध करनेइसकी समालोचना नहीं हुई। कारण भी वाले सम्प्रदायोंमेंसे एक जैनधर्मावलम्बी स्पष्ट है, और वह यह कि जैन जातिमें भी हैं जिनपर हिन्दू कानून लागू होता जो कुछ जागृति हुई, उसका परिणाम है । सन् १८७१ ईसवीमें लाला शिवसिंहगत ५-६. वर्षों से प्रायः यही हो गया है रायने, जो हमारे रायबहादुर लाला कि जैन जाति का धन, बल और समय सुल्तानसिंहजी रईस देहलीके दादा थे, मापसी झगड़ों में नष्ट किया जाता है। अदालत सबजजी मेरठमें बयान किया तीर्थक्षेत्रोंके सम्बन्ध दिगम्बर-श्वेता- था कि उनके मुकदमेका फैसला हिन्दू म्बरोंकी मुकदमेबाज़ी, दिगम्बर सम्प्र- कानूनसे होना चाहिए, जैन रीतिसे नहीं। दायमें १३-२० पन्थी बैंचतान, अन्त. यह मुकदमा लन्दनमें प्रीवी कौंसिलतक आंतीय महासभाओं तथा मुखपत्रोंकी लड़ा (१ इलाहाबाद, ६८%) और यह स्थापना, उनकी आपसकी नोक झोंक, फैसला हा कि जब जैनियोका कोई दलबन्दी, और स्वतंत्र विचारोंकी रोक विशेष रीति या रिवाज गवाहोंसे निश्चित थामने जैन जातिको इस योग्य ही नहीं हो जाय तो वह माना जाय, और नहीं तो रक्खा कि वह अजैन संसारके आक्रमणों जैनियोंके मुकदमोंका फैसला हिन्दू कानून तथा आक्षेपोंसे अपने को बचानेका अथवा से होगा। इस मुकदमे में यह निश्चित हुश्रा जैन धर्मकी सच्ची प्रभावना करने और कि जैन विधवा अपने पतिकी जायदादजैन जातिका गौरव बढ़ानेका कोई काम की मालिक है और स्वतः लड़का गोद ले कर सके। सकती है। हाईकोर्ट के जजोंने अपनी तज. ____ जो कुछ मिस्टर गौरने अपनी पुस्तकमें वीजमें लिखा कि ११-१२ शताब्दियोंसे जैन धर्म या जैन जातिके विषयमें लिखा जैनियोंने वैदिक धर्म छोड़ दिया है, उनके है, वह अन्य आधार पर लिखा है। और धार्मिक सिद्धान्त बौद्धोंसे ज़्यादा मिलते उन अन्य आधारोंका निराकरण तथा हैं। वे हिन्दुओं के चार वर्णाश्रमोंको मामते खंडन करना जैनियों का कर्तव्य है । परन्तु ---- वह छोटा काम नहीं है । यह तभी हो 296 The Jains are another sect of सकता है जब कि जैन जाति की ओरसे dissenters, who still remain Hindus एक ख़ास समिति इस कामके वास्ते and to whom the Hindu Law applies. नियत हो। उसका एक कार्यालय हो और The sect is now a well known sub division of the Vaishya caste which सच श्रेणीका एक यन्त्रालय (प्रेस) उसके is divided into Aggarwalas, Mahesris पास हो।साथ ही एक बृहत् पुस्तकालय Jains. the two former being orthodox उसके अधिकारमें हो और दो चार अंग्रेज़ी, Hindus while the last being classed संस्कृत तथा प्राकृत भाषाओंके विद्वान् as Hindu heretics. They are again और जैन धर्मके ज्ञाता पुरुष आनरेरी या sub-divided into Digambris and Sweसवैतनिक रूपसे उसमें अनन्य-चित्त tambris, the former worshipping their होकर काम करनेवाले हों। god stripped of all attires, while the latter worship him clothed in costly मिस्टर गौर ने धारा नं० २६६* में raiments. The hostility between the इस धाराकी जो नकल 'जैनमित्रमण्डल' देहलीने two sects is as great as theologicum हमारे पास भेजी हैं, वह निम्न प्रकार है-संपादक। odium can reach. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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