Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ स्वानुभव दर्पण सटीक । . उत्तमोत्तम जैन ग्रन्थ । भाचार्य योगीन्द्रदेवकृत प्राकृत दोहाबद्ध योगसारका मुंशी नाथूराम लमेचू कृत नीचे लिखी आलोचनात्मक पुस्तक पद्यानुवाद और भाषा टीका। अध्यात्म- विचारशीलोको अवश्य पढ़नी चाहिएँ । का अपूव ग्रन्थ है। हमारे पास थोडीसी साधारण बुद्धिके गतानुगतिक लोग इन्हें प्रतियों एक जगहसे आ गई है। मू.) न मँगावें। जैन द्वितीय पुस्तक। यह भी उक्त मुंशीजीकी लिखी हुई १ ग्रंथपरीक्षा प्रथम भाग । इस. बड़े काम की पुस्तक है। इसमें करणानु में कुन्दकुन्द श्रावकाचार, उमास्वातियोगकी सैकड़ों उपयोगी बातोंका संग्रह. श्रावकाचार और जिनसेन त्रिवर्णाचार इन किया गया है। १६० पृष्ठकी पुस्तकका तीन ग्रन्थोंकी समालोचना है । अनेक मू. केवल ॥) प्रमाणोंसे सिद्ध किया है कि ये असली जैनहितैषीके फाइल। जैनग्रन्थ नहीं हैं-भेषियोंके बनाये हुए पिछले पाँच छः वर्षों के कुछ फाइल हैं। मूल्य -) मल्या जिल्द बँधे हुए तैयार हैं। जो भाई चाहे २ ग्रंथपरीक्षा द्वितीय भाग । मँगा लेवे। पीछे न मिलेंगे। मू• वार्षिक यह भद्रबाहुसंहिता नामक ग्रन्थकी मूल्यसे आठ आने ज्यादा । विस्तृत समालोचना है। इसमें बतलाया नया सूचीपत्र। उत्तमोत्तम हिन्दी पुस्तकोंका १२ है कि यह परमपूज्य भद्रबाहु श्रुतकेवलीपृष्ठोंका नया सूचीपत्र छपकर तैयार है। का बनाया हुआ ग्रन्थ नहीं है, किन्तु पुस्तक-प्रेमियों को इसकी एक कापी मँगा। ग्वालियरके किसी धूर्त भट्टारकने १६-१७ कर रखनी चाहिए। मैनेजर, वीं शताब्दिमें इस जाली ग्रन्थको उनके हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कायालय, नामसे बनाया है और इसमें जैनधर्मके हीराबाग, पो. गिरगाँव, बम्बई। विरुद्ध सैंकड़ों बातें लिखी गई हैं। इन निता बिना मूल्य । । दोनों पुस्तकों के लेखक श्रीयुक्त बाबू - 'वीर पुष्पांजलि' नामकी एक चार जुगुलकिशोरजी मुख्तार हैं । मूल्य ।) पाना मूल्यकी सुन्दर पुस्तक हमारे पास. ३ दर्शनसार । श्राचाय देवसेनका से बिना मूल्य मिलती है। यह पुस्तक मूल प्राकृत ग्रन्थ, संस्कृतच्छाया, हिन्दी अभी नई छपी है और हमने उसकी ६०० अनुवाद और विस्तृत विवेचना। इतिकापियाँ वितरणार्थ खरीद की हैं, जिनमें हासका एक महत्वका ग्रन्थ है। इसमें से दो सौसे ऊपर वितरण हो चुकी हैं श्वेताम्बर, यापनीय, काष्ठासंघ; माथुरऔर शेष सभी बाकी हैं। जन हितैषीके संघ, द्राविडसंघ श्राजीवक (अज्ञानमत) जिन. पाठकोंको ज़रूरत हो वे डाकखर्चके और वैनेयिक श्रादि अनेक मतोंकी उत्पत्ति लिये प्राधानेका टिकट भेजकर एक २ कापी मगा सकते हैं। 'मेरी भावना' नाम और उनका स्वरूप बतलाया गया है। बड़ी की पुस्तक भी हमारे पास बिना मूल्य खोज और परिश्रमसे इसकी रचना हुई है। मिलती है। इनके सिवाय कुछ कापियाँ आत्मानुशासन । हमारे पाम विधवा कर्तव्य, की भी भगवान् गुणभद्राचार्यका बनाया हुआ रक्खी हुई हैं। जिन विधवा बहनों को इस यह ग्रन्थ प्रत्येक जैनीके स्वाध्याय करने पुस्तककी ज़रूरत हो उन्हें डाक खर्चके योग्य है। इसमें जैनधर्मके असली उद्दश्य लिये एक मानेका टिकट भेजकर मँगा लेना चाहिये और अपना पूरा पता साफ़ शान्तिसुखकी ओर आकर्षित किया गया अक्षरों में लिखना चाहिए। है। बहुत ही सुन्दर रचना है । अाजकल. जुगल किशोर मुख्तार, की शुद्ध हिन्दीमें हमने न्यायतीर्थ न्यायसरसावा जि० सहारनपुर शास्त्री पं० वंशीधरजी शास्त्रीसे इसकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40