Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 35
________________ मङ्क ११ ] 'मेरी भावना' की लोकप्रियता। ३५७ . .१०–श्रीयुत ला० गनेशरामजी, बिल- कर बिना मूल्य वितीर्ण कर दें। इस तरहसे छपा हुआ राम जि. एटा। यदि कोई सज्जन इसे शीशेमें जड़वाकर अपने मकानमें या "हमने आपकी बनाई हुई 'मेरी भावना' नामकी श्रीमन्दिरजीमें लटकाना चाहें तो उसके लिए सुभीता हो। पुस्तिका कई जगह देखी है। वह बहुत ही उच्च कोटिकी हम आपको लिखी भावनाका प्रचार करना चाहते हैं।" और सारगर्भित है उसमें बाँटने के लिए कई अच्छे अच्छे १५-श्रीयुत ला० उम्मेदसिंह मुसद्दी. महाशयोने हमें अनुमति दी है-अतः हम आपसे यह लालजी, अमृतसर। जानना चाहते हैं कि हमें उसकी २०० प्रतियाँ किस "बाबू देवेन्द्रप्रसादजीने कुछ पुस्तकें मेरी भावना प्रकार प्राप्त हो सकती हैं ?" बाँटनेके वास्ते दी थीं सो यहाँपर बाँटी गई और वह ११-श्रीयुत ला चिम्मनलाल दलीप बहुत पसन्द आई इस वास्ते अभी बहुतसे आदमी माँगते सिंह काग़ज़ी, देहली। हैं, जैनियोंके सिवाय अन्य मती आर्यसमाजी और सना___ "यह पुस्तक यहाँ बहुतसे आदमियोने पसन्द की तनी तक भी माँगते हैं...."इस वास्ते आपसे प्रार्थना है है-खास कर अजैन आदमियोंको ज्यादा पसन्द आई। अगर आप जितनी भी भेज सकें, भेज दें।" आपको धन्यवाद है जो आप इस तरह निःस्वार्थ सेवा कर १६-श्रीयुत ला० हरनामसिंह मंगत. रहे हैं।" "वाकई यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी है।" रायजी, बम्बई। १२-श्रीयुत ला० रघुनन्दनप्रसादजी 'आपकी लिखी हुई 'मेरी भावना' नामकी पुस्तक जैन, अमरोहा। श्रीमात्मानन्द जैन टक सोसायटी, अम्बाला द्वारा प्रका. "आपकी बनाई हुई 'मेरी भावना' कई भाइयोंको शित मिलो। पढ़कर अतीव आनन्द प्राप्त हुआ। मेरे यहाँ बहुत पसन्द आई । मेरे पास जो तीन प्रति थीं वे मैंने विचारमें इसका नित्य प्रति हर एक गृहस्थको पाठ करना । औरोंको दे दी शब और भाइयोंकी माँग है । अतः आपसे चाहिर तथा बालकों को पाठशालामें यह मौखिक याद ते है कि कमसे कम पन्दह बीस प्रति 'मेरी कराई जावे । अतः मेरा विचार हुआ है कि इसकी १००० भावनाकी' अवश्य अवश्य भेज दीजिए।....."मैंने एक प्रति छपवा कर पाठशालाओं में वतीर्ण की जायें। आपकी प्रति अजैन विद्वान् ब्राह्मण को दी थी जो उन्होंने बहुत . स्वीकृति आनेपर इस कार्यका प्रारम्भ किया जावेगा।" पसन्द किया है तथा नित्य प्रति पाठ करते हैं।" ___१७-श्रीयुत संघई मोतीलालजी, (३०-६-२१) मास्टर शिवपोल स्कूल, जयपुर । १३--श्रीयुत ला. मगनलालजी जैन, "आपने जो 'मेरी भावना' लिखी है वह बहुत ही 'सीपरी केम्प (ग्वालियर)। उपयोगी है। मेरे हाथमें श्रीसन्मति नामका पुस्तकालय है ___ "कृपाकर 'मेरी भावना' की पुस्तकें एक सौ हमारे जिससे प्रतिमास करीव ५०० पुस्तकें Issue हो जाती पते पर वी० पी० से या रजिस्ट्री से जैसे भी आप हैं......." आज यह इच्छा हुई है कि आपको उपर्युक्त मुनासिब समझे भेज दीजिएगा, क्योंकि उक्त नामकी एक पुस्तकका प्रचार जैनी और वैष्णव तथा मुसलमानों तकमें पुस्तक हमारे ( यहाँ) बम्बईसे आई थी सो हमारे यहाँ के हो तो बहुत उपकार हो-इसलिए आपसे प्रार्थना है कि जैन व अजैन भाइयोंने सबोंने पसन्द को। इसी वास्ते __यदि आपकी आज्ञा हो जाय तो इस पुस्तकालयकी ओरसे या उनको वितरण करनेके लिए हमने एक टेलीग्राम-तार २००० पुस्तक छपवाकर लोगो २००० पुस्तकें छपवाकर लोगों में प्रचार किया जाय।" श्रीयुत बाबू कुमार देवेन्द्रप्रसादजी श्राराको दिया था, ता०२३-३-१९२१ उत्तरमें उन्होंने ३ कापी भेजी और लिखा......" १-श्रीयुत बाबू दीवानचन्दजी, १४-मन्त्री श्रीवात्मानन्द जैन सभा', सेक्रेटरी 'जैनसुमति मित्रमण्डल', रावलअम्बाला शहर। पिएडी। "आपकी लिखी 'मेरी भावना' पढ़कर बहुत आनन्द ..."उन्होंने (एडीटर जैन प्रदीपने) 'मेरी भावना' आया, उसके अन्दर जो भाव आपने रखे हैं वे बहुत ही नामकी छोटी सी मगर बड़ी सुन्दर छपी हुई और बड़ी सत्तम है। हम चाहते हैं कि इससे और सज्जन भी कीमती नसीहतोंसे भरपूर-जिसमें एक एक भावना लाभ उठावें, इसलिए हमारा विचार है कि फुलस्केप अमे- सैंकड़ोंकी नहीं, हजारोंकी नहीं बल्कि लाखों करोड़ोंकी। रिकन कागजपर एक ही सरफ इश्तिहारकी सरह छपवा- कीमतकी है-इरसाल फर्माई (भेजी) है। मैं बड़े जोर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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