Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 8
________________ ३३० है जितना कि पृथ्वीके आकार सम्बन्धी बातों का। और जिन लोगोंने भौतिक विज्ञानका विशेष रूपसे अध्ययन नहीं किया है, उनको इस श्राकर्षण शक्तिका यथार्थ ज्ञान तो एक ओर रहा, श्रभासं मात्र भी नहीं होता। यही कारण है कि जब कभी इसकी चर्चा सुनाई देती है तब अनेक अद्भुत बातोंके साथ इसका सम्बन्ध जोड़ने की चेष्टाका सामना करना पड़ता है। जैनहितैषी । इस सम्बन्ध में सबसे पहली बात जो स्मरण रखनी चाहिए वह यह है कि यह शक्ति जिसे 'गुरुत्वाकर्षण शक्ति' कहते हैं, केवल पृथ्वी में ही नहीं है किन्तु संसारके जितने पुल परमाणु हैं, उन सबमे समभाव से विद्यमान है । सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र भी इसी श्राकर्षण शक्तिकी सहायता से अपना कार्य करते हैं। पृथ्वी गोल हो या चपटी, वह घूमती हो अथवा स्थिर, इन बातोंपर इस शक्तिका होना न होना निर्भर नहीं है । यह सच है कि इस शक्तिके ज्ञानकी सहायता से पृथ्वी सम्बन्धी बातोंके समझने में कुछ कष्ट कम हो जाता है, किन्तु इसलिये यह श्रावश्यक नहीं है कि भूगोल सम्बन्धी श्राधुनिक सिद्धान्तोंका खण्डन करते समय इस शक्तिके अस्तित्वका भी खण्डन किया जाय। विशेषकर जब जैनशास्त्रोंमें श्राकर्षण शक्तिका नाम भी नहीं लिया गया, उसके विपरीत किसी सिद्धान्तका प्रतिपादन भी नहीं किया गया, तब व्यर्थ ही हम लोग जैनधर्म की श्रोरसे इसका खण्डन करनेका प्रयत्न क्यों करें ? हाँ, यदि केवल साधारण वैज्ञानिक दृष्टि से इस शक्तिके सम्बन्धमें भी युक्ति और प्रमाणका प्रयोग करनेकी इच्छा हो तो उसमें कोई हानि नहीं । जिस प्रकार भूभ्रमण से भिन्न सहस्रों अन्य बातोंको समझने और माननेके लिये Jain Education International [ भाग १५ प्रमाणोंकी आवश्यकता होती है, उसी प्रकार इस विषय में भी होना चाहिए । फिर भी मीमांसा-लेखक और उन्होंके मतके अन्य महाशयोंके सन्तोषके लिये गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी कुछ श्राक्षेपका संक्षेप में उत्तर दे देना उचित होगा । सब से बड़ी आपत्ति जो पृथ्वी की आकर्षण शक्तिको माननेमें होती है, वह यह है कि पत्थर या मिट्टीके एक टुकड़े के द्वारा वस्तुओंको आकर्षित होते हुए साधारण तौरपर कोई नहीं देखता । किन्तु वैज्ञानिक ज्ञानकी अभिलाषा रखनेवाले अनेक कष्ट उठाकर भी कठिन से कठिन कार्यको कर डालने का साहस रखते हैं और उन्होंने सचमुच ही पुद्गल के छोटे छोटे टुकड़ोंका आकर्षण प्रत्यक्ष देखा है। तराजूके एक पलड़े के नीचे धातु या अन्य किसी भारी वस्तुका टुकड़ा रखने से वह पलड़ा भारी हो जाता है, इत्यादि बातें कई वैज्ञानिकों (बथा Cavendish, Joly, Poynting श्रादि) ने स्वयं देखी हैं और अनेक अन्य पुरुषों को दिखलाई हैं । अब भी जो कोई महाशय उतना कष्ट उठाना चाहें, वे अवश्य ही प्रकृतिका यह तमाशा स्वयं देख सकते हैं । इस सम्बन्धमें क्या क्या प्रबन्ध करना होगा और किन किन वस्तुओं और यंत्रोंको संग्रह करना होगा, इसका उल्लेख करना अनावश्यक है । क्योंकि ये बातें भौतिक विज्ञानकी साधारण पुस्तकों में श्रासानी से मिल सकती हैं। हाँ, यह बता देना आवश्यक है कि इतने प्रबन्धकी ज़रूरत क्यों होती है । सेर भर वस्तुको पृथ्वी पर से ऊपर उठाने में जो बल लगता है वह ८००० मील व्यासवाली प्रकाण्ड पृथ्वी के प्रत्येक परमाणुकी श्राकर्षण शक्तिका एकत्र परिणाम है और पृथ्वीका वज़न साधारण हिसाब से इसने मन है कि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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