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जैनहितैषी।
[ भाग १५
मूलसंघी दिगम्बरी विद्वानोंने जैनाभासों- पद्मनन्दिने मुनियों के मध्य पूजित हुए शाकके श्वेताम्बर, यापनीय, द्रविड़ और. टायनको 'मन्दरके समान धीर' विशेषणमाथुर सङ्घके ग्रन्थों का भी श्रादर किया है। से विभूषित किया था।" कहनेकी आव.
(६) यह सिद्ध किया जा चुका है कि श्यकता नहीं कि ये पद्मनन्दि सिद्धान्त. शाकटायन या पाल्यकीर्ति यापनीय सङ्घ. चक्रवर्ती भी मूलसंघी आचार्य थे। 'के प्राचार्य थे और श्रीश्रुतसागरसूरिके
(७)न्यायविनिश्चयालंकार, पार्श्वनाथ • कथनसे* तथा और भी अनेक प्रमाणोंसे
काव्य, यशोधर चरित, श्रादिके कर्ता यह निश्चय हो गया है कि यापनीयसङ्घ
वादिराजसूरि द्रविडसंघके प्राचार्य थे श्वेताम्बरोंके ही समान स्त्रीमुक्ति. केवलि.
और इस संघकी गणना भी मिथ्यामुक्ति श्रादि मानता है। बल्कि स्वयं
तियों में जैनाभासोंमें है। परन्तु इनके शाकटायन आचार्यका बनाया हुआ
ग्रन्थोंपर भी अनेक मूलसंधी विद्वानोंने 'स्त्रीनिर्वाण-केवलिमुक्ति प्रकरण' नामका
टीकाएँ प्रादि लिखी हैं और उनकी प्रशंसा ग्रन्थ मिला है जिसमें उन्होंने इन दोनों की है।पार्श्वनाथ-काव्यकी एक 'पंजिकाबातोका खूब जोरोसे प्रतिपादन किया टीका' षटभाषाकविचक्रवर्ती शुभचन्द्राहै। ऐसी दशामें भी उनके व्याकरणपर चार्य कृत और दूसरी प्रभाचन्द्राचार्य कृत अनेक मूलसङ्घी आचार्यों और विद्वानों
है। यशोधरचरित पर भी प्रभाचन्द्रकी एक ने टीकाएँ लिखी हैं और किसी किसीने 'पंजिकाटीका' है। पं० रायमल्लने एकी. तो उनको नमस्कारतक किया है ! शाक- भावकी टीका लिखी है। श्रवणबेलगोलटायनकी एक टीका 'मणिप्रकाशिका' की मल्लिषेण प्रशस्तिमें-जो एक मूलनामकी है जो अजितसेनाचार्यकी लिखी संघी आचार्यकी लिखी हुई है-वादि. हुई है, दूसरी कातन्त्ररूपमालाके कर्ता राजसूरिकी निःसीम प्रशंसा की गई है। भावसेन त्रैविधदेवकी है, तीसरी प्राचार्य
(E) हरिवंशपुराणके कर्ता जिनसेन प्रभाचन्द्रकी है, जिसका नाम 'अमोध.
द्रविड़संघके और अमितगतिसूरि माथुरवृत्तिन्यास' है और चौथी अभयचन्द्र
(निःपिच्छिक) संघके प्राचार्य थे । ये सूरिकी प्रक्रियासंग्रह है। ये चारों टीकाएँ
दोनों ही जैनाभास हैं। फिर भी इनके मृलसंधी प्राचार्योंकी हैं। मुनि वंशाभ्यु
ग्रन्थोंकी टीकाएँ और वचनिकाएँ मूलदय काव्यके कर्ता चारुकीर्ति पण्डितदेव
संधियोंने लिखी हैं। प्राचार्य वसुनन्दिने (चिदानन्द) ने-जो मूलसंघीय प्राचार्य
अपनी प्राचारवृत्ति टीका (= वे परिथे-लिखा है कि "शाकटायनने अपने
च्छेद) में माथुरसंघी अमितगतिश्रावकाबुद्धिरूपमन्दराचलसेश्रुतसमुद्रका मन्थन
चारके पाँच श्लोक 'उपासकाचारे उत्त:करके यशके साथ व्याकरणरूप उत्तम
मास्ते' कहकर उद्धृत किये हैं । इससे तो अमृत निकाला । x x जगत्प्रसिद्ध शाक
यहाँतक मालूम होता है कि खास धर्मटायन मुनिने सूत्र और वृत्ति बनाकर
ग्रन्थों में भी हमारे प्राचार्य जैनाभासोंके एक प्रकारका पुण्य सम्पादन किया।
ग्रन्थोके अवतरण दिया करते * . एक बार अविद्धकर्ण सिद्धान्तचक्रवर्ती
."यापनीयास्तु..."रलायं पूजयन्ति, कल्पंच और भी दि. जैन विद्वानों के बनाये हुए 'सम्पक्त्ववाचयन्ति, स्त्रीणां तद्भवेमोक्ष फेवलिजिनानां कवलाहारं कौमुदी' आदि बीसियों ग्रन्थ ऐसे है जिनमें स्वविषय परशासने सग्रन्थानां मोक्षं च कथयन्ति "
समर्थनादिके लिए सैंकड़ों वाक्य अजैन तथा जैनाभास
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