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अङ्क ६] महासभाके कानपुरी अधिवेशनका कच्चा चिट्ठा। १७६ मन्दिरों और तीर्थोंको लोगोंने अपनी सद तथा कार्यकर्ता न रह सके और एक जागीर बना रक्त्रा है, उनके हिसाबकी जैन बैंककी भी स्थापना होनी चाहिए।" जाँचके वास्ते निरीक्षक नियत होने सभापतिका भाषण समाप्त होनेपर चाहिएँ; मन्दिरोंके रुपयेको जीर्ण ग्रन्थों- रिपोर्ट पढ़ी गईं*जैन गज़टकी रिपोर्टके. की प्रतिलिपि कराने में, और एक मन्दिर- सम्बन्धमें ब्र. शीतलप्रसादजी अपने का रुपया आवश्यकतानुसार दूसरे जैनमित्रके गताङ्क २१ में यह प्रगट करते मन्दिरमें लगाना चाहिए; तीर्थक्षेत्र हुए कि, ६०६६)॥ का घाटा जैनगज़ट सम्बन्धी झगड़ोंके फैसलेके वास्ते ११ खातेमें है और करीब ३०००) का घाटा सदस्योकी कमेटी पूर्ण अधिकार सहित गत वर्षका है, शोकके साथ लिखते हैं बनाई जाय; गौने (द्विरागमन) की रसम- कि “गज़टकी लेखनशैली उत्तम न होनेको उठा देना चाहिए; महासभाके सभा- पर भी इसकी सम्पादकीका कोई यथोसद और कार्यकर्ता उसके प्रस्तावोंपर चित प्रबन्ध न किया गया, जिससे यह अमल नहीं करते, अतः ऐसा नियम होना भारी घांटा बन्द हो जाता ।” अस्तु । चाहिए कि ऐसे व्यक्ति महासभाके सभा- रिपोर्टोंके पश्चात् सब्जेकृ कमेटीका चुनाव
हुआ और उसके सदस्योंकी सूची ब्रह्मउस समय जैन ग्रन्थोंका छापना प्रारम्भ हो हुआ था. चारा शातलप्रसादजान पढ़कर सुनाई। और शायद यह सोचा गया था कि वह इस प्रकारकी
६११ सद कार्रवाहिवों द्वारा रुक जायगा, परन्तु ऐसा नहीं हो सका, महिला-रत्न श्रीमती मगनबाई और और प्रस्ताव पूर्ण रूपसे असफल रहा।
पण्डिता चन्दाबाईजीके नाम पढ़े जानेपर ___ अब जब कि छपे हुए ग्रन्थोंका आम तौरसे खुला सभाने हर्ष प्रकट किया।सब्जेकृ कमेटीका प्रचार हो रहा है, सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, कार्य - बजे प्रारम्भ होना निश्चित हुना अष्टसहस्री, प्रमेयकमलमार्तण्ड, पचाध्यायी, समयसार,
बाध्यायी, समयसार, था, किन्तु ६ बजे रात्रिके भी पीछे कामप्रबचनसार, पंचस्तिकाय, गोम्मटसारादि जैसे बड़े बड़े
का प्रारम्भ हुश्रा। पहले ही ब्रह्मचारी और महान् ग्रन्थ भी छप चुके हैं। अच्छे अच्छे विद्वान् पंडित लोग ग्रन्थोंके छपानेका कार्य कर रहे हैं। कुछ सेठ शीतलप्रसादजीने कहा कि सब्जेक कमेटीलोग भी अन्योंके उद्धारमें लगे हुए हैं। माणिकचन्द ग्रन्थ- में दो महिलाओके चुने जानेसे समाजके माला, अनन्तकीर्ति ग्रन्थमासा, जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्या- कुछ लोग असन्तुष्ट हैं; यद्यपि स्वयं लय बम्बई, जैनसिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था कलकत्ता, उनके विचारमें उक्त दो महिलाओंका दी सेंटल पबलिशिंग हाउस आरा आदि कितनी ही
सदस्य होना अनुचित नहीं है, किन्तु संस्थाएँ ग्रन्थोंको छापकर उनका उद्धार कर रही हैं, मन्दिरों। तकमें छपे ग्रन्थ विराजमान किये जाते हैं. लोग प्रेमसे समाजकी असन्तुष्ट अवस्थाको देखते हुए उन्हें पढ़ते, खरीदते तथा वितरण करते है। और इस यदि उनका चुनाव
यदि उनका चुनाव न होता तो अच्छा समय महासभाके साहित्य प्रदर्शनमें भी उनका एक होता। और उन्होंने फिर यह भी कहा अलग विभाग रक्खा गया है। तब ग्रन्थोंके छापने और कि सब्जेकृ कमेटीका चुनाव नियमबपे ग्रन्थोंको पढ़ने तथा खरीदनेके निषेध सम्बन्धी उक्त विरुद्ध होनेके कारण ठीक नहीं है, क्योंकि प्रस्तावको स्थिर रखनेका कुछ भी अर्थ नहीं रहता। दोनों महिलाएँ न महासभाकी सदस्य हैं उलटे सुननेवालोंके लिए यह एक हास्यका विषय बन नाता है। और उससे महासभाके गौरवको धक्का पहुँचता | इसलिए मेरी सम्मतिमें वह प्रस्ताव अब अनावश्यक * जैनप्रदोपसे मालूम हुआ कि रिपोटों की मंजूरोपर और अव्यवहरणीय समझा जाकर २६ किया जाना कई व्यक्तियों ने आपत्ति की थी, परन्तु फिर भी वे भींगा
भीगीसे पाम हो ही गई।----सम्पादक।
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