Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 04
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 23
________________ अङ्क ६] महासभाके कानपुरी अधिवेशनका कच्चा चिट्ठा। ११ इस स्थानपर सभाकी कार्यवाहीमें लिख गया । श्रीयुत कुमार देवेन्द्रप्रसादजी ली जाय और सभापति महोदयने हुक्म द्वारा स्थापित “दि सेंट्रल जैन पब्लिशिंग दिया कि ऐसा किया जाय। इसके बाद हाउस" नामकी संस्थाको चिरस्थायी हमने यह निवेदन किया कि जो सब्जेक बनाने और उसकी सब सम्पत्ति खरीद कमेटी आज चुनी जाय उसकी नामावली- लेनेके विषयमें एक प्रस्ताव लाला रूप. के साथ साथ गत दिवसकी चुनी हुई चन्दजीके सुपुत्र लालारामस्वरूपजीसभासम्जेक कमेटीकी नामावली भी लगा दी पति स्वा० का० समितिने उपस्थित कराया जाय; इस कहनेपर कोलाहलसा हो जिसका पण्डित धन्नालालजीने विरोध गया और कोई निर्णय नहीं हुआ। फिर किया और कहा कि जैनशास्त्र छपानेका नामावली पढ़ी गई । उसमें श्रीयुत काम महासभाके उद्देश्यके विरुद्ध है और विश्वम्भरदासजी गार्गीय सम्पादक इसलिए यह प्रस्ताव गिरा दिया गया। 'जाति प्रबोधक' का नाम न था, जो पहले ३ घण्टेमें कुल छः प्रस्तावोंका निर्णय दिन सब्जेक कमेटी में लिये गये थे और हुआ-इनमें दो प्रस्ताव कुछ सजनोंकी रात्रिको बराबर उसमें उपस्थित रहे थे। मृत्युपर शोक और कुटुम्बसे सहानुभूतिसाथ ही कुछ नाम बढ़ा दिये गये थे। सम्बन्धी थे, शेष चार प्रस्ताव स्वदेशी उपर्युक्त दोनों विदुषी महिलाओंने वस्तु व्यवहार, धवलत्रयकी प्रतिलिपि, सब्जेकृ कमेटीकी सदस्यतासे अपना संयुक्त प्रान्तीय सभा और महाविद्यालय त्यागपत्र पहले ही भेज दिया था और कमेटीसे सम्बन्ध रखते थे। ये सब वे गत रात्रिकी सब्जेकृ कमेटीमें उपस्थित प्रस्ताव रात्रिके अधिवेशनमें स्वीकृत भी नहीं थी। वास्तविक फल इस सात हो गये। माठ घण्टेके खर्च होनेका यह हुआ कि ३ अप्रेलको फिर सब्जेकृ कमेटीको श्रीयुत विश्वम्भरदासजी गार्गीय सम्पा- बैठक बैठी और वह = से ११ और फिर दक 'जाति प्रबोधक' का नाम सब्जेक २ से ५ बजे दिन तक हुई । पहले ही कमेटीके सदस्योंकी श्रेणीसे निकाल दिया महामन्त्रीजीने प्रस्ताव उपस्थित किया कि गया और कुछ नये महाशयोंके नाम बाबू नवलकिशोरजी वकीलको कोषाबढ़ा लिये गये। फिर नई सब्जेकृ कमेटी. ध्यक्षके पदसे पृथक् किया जाय, उनको की बैठक प्रारम्भ हुई। देवगढ़के पुराने अवकाश नहीं है और न वे हिसाब देते जैन मन्दिरों और प्रतिबिम्बके रक्षार्थ हैं। बाबू नवलकिशोर कोषाध्यक्ष तो हैं, करनेका प्रस्ताव पेश हुआ। उस परन्तु महासभाकी आमदनीका रुपया समय विश्वम्भरदास गार्गीयकी आव- उनके पास जमा नहीं होता और न उनके श्यकता जान पड़ी कि इस विषयमें सम- पास आमदनी-खर्चका हिसाब रहता है। भावे कि क्या हुआ और क्या होना महासभाकी आमदनी और उसका खर्च पाहिए, क्योंकि उन्होंने इस सम्बन्धमें • जैनप्रदीपके सम्पादक महाशय लिखते हैं कि महापड़ा परिश्रम किया था। परन्तु उनको सभाके नियम नं. ६२ के अनुसार किसी भी प्रस्तावका सम्जेकृ कमेटीकी सभासदीसे पहले ही पेश करनेवाला सम्जेकृ कमेटीका मेम्बर जरूर रहेगा। परन्तु अफसोस है कि कुछ मनमौजो लोगोंने इसके विरुद्ध पृथक कर दिया गया था इससे वे नहीं पाचरण किया और विश्वम्भरदासजी गार्गीयका नाम दुनाये गये और प्रस्ताव उठा लिया बिना वजह ही दूसरे दिन सम्जेक कमेटीसे निकाल दिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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