Book Title: Jain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Author(s): Alpana Agrawal
Publisher: Ilahabad University

View full book text
Previous | Next

Page 130
________________ तो हमारे पास यह कहने का कोई कारण नहीं रह जाता कि सूर्य फल भी निकलेगा। उनका कहना है कि हमारा सभी व्यवहार भूतकाल में घटित साहचर्य पर आधारित है और उसके हम भविष्य में भी होने की आशा करते हैं। भूतकाल के आधार पर भविष्य के विषय में उसकी आशा करना आगमन के सिद्धांत पर आधारित है 120 यदि जैन दर्शन के संदर्भ में यह जानने का प्रयत्न किया जाये कि यहा' अनुगान Tन ए आवश्यक हेतु और साध्य के अनिवार्य और सार्वभौम संबंध, ' गिध्याप्ति संस भी कहा जाता है, कि नाशिाता नित प्रकार स्थापित की गयी है तो पास होगा कि जैनों ने व्याप्ति संबंध की सिद्धि "तक-प्रमाण के द्वारा की है। प्रमाण मीमाता से कहा गया है कि सहभावियों का सहभाव 'नियग और कमभावियों का क्रमभाव नियम ही अविनाभाव है और उसका निर्णय तई से होता है 121 जिसे रसेल आगमन का 'तिमात Principle of-nbucheil कहते हैं उसे ही जैन दार्शनिक तर्क-प्रमाण के ..ारा व्यक्त करते हैं 122 तक जातिविपक सामान्य ज्ञान है और इसका पाश्चात्य दल के कार्य कारण संबंध, आपादन संबंध | mplicatheri | और अधिनाभाव संबंध से किसी सीमा तक तादात्म्य स्थापित किया जा सकता है। जैन दार्शनिक अनुमान को स्वतंत्र प्रमाण मानते हैं किन्तु अनुमान की प्रमाणिकता व्याप्तिान पर निर्भर हे तया व्याप्ति ज्ञान तर्क पर निर्भर है। इसलिए जैन दार्शनिक तक को स्वतंत्र प्रमाण मानते हैं।25 साध्य और साधन के अधिनाभाव संबंध को न तो "निर्विकल्प प्रत्याः जान सकता है और न साधिकल्प । अतः इसके जानने के लिए तापनाम का प्रमाणातर मानना चाइन्द्रियमाना और यो गिप्रत्यक्ष व्याप्ति को गहण करने में असमर्थ है 124 तर्क की परिभाषा प्रमाणमीमांसा में इस प्रकार दी गयी है - उपलम्भ और अनुपलम्भ के निमित्त से जो 'व्याप्ति जान होता है वह ही तर्क है 125

Loading...

Page Navigation
1 ... 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183