Book Title: Jain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Author(s): Alpana Agrawal
Publisher: Ilahabad University

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Page 160
________________ एक संशयावस्था और भी है - अनध्यवसाय - अनध्यवसाय की स्थिति स्मृति के अभाव में उत्पन्न होती है। किसी परिचित वस्तु पर अनमयस्कता के कारण ध्यान न देने की स्थिति को अनध्यवसाय कहते हैं ।।। यह वस्तु का एक प्रकार का निर्विकल्प प्रत्यक्षा है जिसमें वस्तु के विषय में विशिष्ट ज्ञान का अभाव रहता है । उदाहरण के लिए प्यास के मैदान पर चलते हुए मनुष्य की वह मानसिक स्थिति जिसमें उसे यह अनुभूति तो है कि पैरों के नीचे कुछ है किन्तु अनमयस्कता के कारण यह ध्यान नहीं देता कि यह क्या वस्तु है और उसका नाम क्या है । 12 एक तथ्य वास्तव में जो वह नहीं है उस रूप में निश्चित करने में समारोप होता है। मिथ्याज्ञान वस्तु के स्वरूप को गलत समझना है। मिध्याज्ञान में एक वस्तु वहाँ देखी जाती है जहां वह नहीं होती। भारतीय दर्शन में मिथ्यात्व की समस्या पर अत्यन्त विस्तारपूर्वक विचार किया गया । प्रत्येक भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों में भ्रम के विषय में विशिष्ट 'सिद्धान्त हैं। इसका कारण यह है कि भारतीय दाशीनिक मानते हैं कि दर्शन का आरम्भ बिन्दु मिध्यात्व का बोधा है। वे किसी वस्तु को उसकी सम्पूर्णता में जानने का प्रयास करते हैं और मिथ्यात्व के निराकरण के माध्यम से सत्य की खोज करते हैं। सत्य की खोज के प्रयास में मानव ज्ञान में असत्य का कुछ अंधा भी अनुभव द्वारा अवश्य प्रविष्ट होता है। वैज्ञानिक विधि में भी भ्रम की संभावनायें रहती हैं। वैज्ञानिक खाजें सत्य का अन्वेषण करते हुये निरन्तर संभावित मुक्तियों की खोज करती रहती हैं। यही कारण है कि वैज्ञानिक अनुसंधान का कोई भी निष्कर्ष अमेक्षिक ही होता है। आगे की खोजों द्वारा उसमें परिवर्तन की निरन्तर संभावनायें बनी रहती हैं। पर्स ने उन दार्शनिक सिद्धान्तों की कही आलोचना की जो यह सोचते थे कि मानव को सत्य का यथार्थता का पूर्ण ज्ञान है । पर्स का यह सुझाव है कि ज्ञान का अनुसंधान करते समय किसी विश्वास को जकड़े नहीं रहना चाहिये । पर्स के अनुसार असत्य संभाव्यतावाद वैज्ञानिक विधि से संबंधित भाति की संभावनायें। का

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