Book Title: Jain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Author(s): Alpana Agrawal
Publisher: Ilahabad University

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Page 168
________________ जैन दिखाते हैं कि भ्रम में प्रत्यक्षीकरण की विषयवस्तु वास्तव में सीप है, जिसका कि वास्तविक रूप छिपा हुआ है तथा वह एक दूसरे रूप को ग्रहण किये होती है । भ्रमात्मक प्रत्यक्ष में जहाँ एक ओर सीम में विशिष्टता नहीं दिखायी पड़ती वहाँ दूसरी और सीप और चांदी में जो सामान्य विशेषतायें हैं जैसे चमक आदि, वह ही दिखाई पड़ती है, जो चांदी की धारणा को जागृत कर देती है, तथा प्रत्यक्षीकरण के विषय पर चांदी के रूप को आरोपित कर देती है 130 प्राभाकर कहते हैं कि भ्रम प्रत्यक्ष के विषय और स्मृति में भेद के अभाव का अनुभव है । इसकी आलोचना करते हुये जैन कहते हैं कि भेद का क्या अर्थ है ? क्या यह अननुभूति निषेधात्मक प्रत्यक्षीकरण है या अभेद । प्रत्यक्ष और स्मृति के आधारा का भावात्मक प्रत्यक्षीकरण है । प्राभाकरों के मत के संदर्भ में पहली स्थिति संभव नहीं है क्योंकि उनके मत में अभावात्मक का कोई प्रत्यक्षीकरण नहीं हो सकता । प्राभाकर दूसरी स्थिति को भी स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि यह स्थिति उन्हें विपरीत ख्याति मत के निकट पहुंचा देगी । उनके विचार में भेद की अननुभूति न होने का मात्र तात्पर्य है चांदी और सीप की सामान्य विशेषताओं का प्रत्यक्षीकरण 131 जैन कहते हैं कि प्राभाकरों का उपर्युक्त विचार उनकी सहायता नहीं कर सकता क्योंकि हमारे सत्य प्रत्यक्षीकरण में भी सामान्य विशेषताओं का प्रत्यक्षीकरण शामिल है । उदाहरणार्थ सीम को सीप के रूप में प्रत्यक्ष होता है जो सीप और चाँदी दोनों में सामान्य है | 32 प्राभाकर इसके उत्तर में कहते हैं कि सीप के एक वास्तविक या सत्य प्रत्यक्षीकरण में इसकी सामान्य बातों के अतिरिक्त इसकी विशिष्टताओं को भी देखते हैं । जैन इसका भी खंडन करते हुये कहते हैं कि प्राभाकरों का यह मत दिखाता है कि सामान्य विशेषताओं का एकाकी प्रत्यक्षीकरण कभी नहीं होता और प्रत्येक प्रत्यक्षीकरण में सामान्य बातों के अतिरिक्त वस्तु की विशिष्टतायें भी होती हैं । तब भ्रम कैसे हो सकता है जो कि प्राभाकरों के अनुसार किसी भी सामान्य विशेषताओं के प्रत्यक्षीकरण मात्र से होता है ।

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