Book Title: Jain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Author(s): Alpana Agrawal
Publisher: Ilahabad University

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Page 157
________________ 145 33. रतादगात्ममनन चिनिहन्ति मिथ्या भानं सवासनुमतो न तदुत्थबन्धः । कमान्तरक्षयकार तु पर चरित्र 'निर्बन्धमात्थ जिन | साधु नियोगम् ।। जैनन्याय खाव, गाथा 78. 34 तत्वावासिक, भाग । शलोक 65, 66. 35. वाणं पचास तयो तोरओ संजमों प गुप्तिधरी। तिपि समाजोर मोक्खो जिण्सासणे दिनी ।। नवपक, गाथा 120 36. उप्पणम्भि अति गम्मि य छादुत्थिये गाणे । देविदाणपिंदा करोति पूर्ण निरस्स It वही, गाथा 15. 37. मोक्यात परमतो जीवे चरित्र सजदे दि । भद जाइबग्गे अन्य भवणालीणे ।। वही, गाथा 405. 38. तत्वार्थवास्तिक, भाग 1, 65-66.

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