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33. रतादगात्ममनन चिनिहन्ति मिथ्या
भानं सवासनुमतो न तदुत्थबन्धः । कमान्तरक्षयकार तु पर चरित्र 'निर्बन्धमात्थ जिन | साधु नियोगम् ।।
जैनन्याय खाव, गाथा 78.
34 तत्वावासिक, भाग । शलोक 65, 66.
35. वाणं पचास तयो तोरओ संजमों प गुप्तिधरी। तिपि समाजोर मोक्खो जिण्सासणे दिनी ।।
नवपक, गाथा 120
36. उप्पणम्भि अति गम्मि य छादुत्थिये गाणे । देविदाणपिंदा करोति पूर्ण निरस्स It
वही, गाथा 15.
37. मोक्यात परमतो जीवे चरित्र सजदे दि । भद जाइबग्गे अन्य भवणालीणे ।।
वही, गाथा 405.
38. तत्वार्थवास्तिक, भाग 1, 65-66.