Book Title: Jain Dharm Vikas Book 03 Ank 01 Author(s): Lakshmichand Premchand Shah Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth View full book textPage 5
________________ શ્રી આદિનાથ ચરિત્ર. देह माहि जिमि इन्द्रियां, बड़े एकहीं साथ । तिमि बड़ते चारो कुमर, पढ़े एकहीं साथ ॥ श्रीमति जीव भी चव्यकर, जन्म गया तेहि गाम। इश्वरदत्तजी शेठ घर, केशव हे शुभ नाम । छहो मित्र सब साथ, सभी बड़े ज्ञानी भये । मित्र विछोहन भात, जीवानन्द सबमें बड़ा॥ एक सम मित्र सब आवा, जिवानन्द भवन बिठलावा। तेहि अवसर एक साधू आया, पृथ्वीपाल नृप पुत्र सुहाया। त्याग राज शुभ दिक्षा लीनी, मोक्षके फल देन प्रवीणी। करत तपश्या देह सुखाई, जिमि ग्रिष्मऋतु नीर सुखाई ।। देह माहिं अल्प हे मासा, तप प्रभाव सब रक्त विनासा। पूर्व कर्म कुष्ट हो जावा, तासे मुनिवर अति दुःख पावा।। मुनिवर दवा न मागन चाहे, मोक्षेच्छुक देह नहीं भौहे । देह माहिं रखते नहीं ध्याना, चाहत सदा जीव कल्याना। देख दशा मुनिराजकी, महिधर राजकुमार । बोले जीवानन्दसे, करुणा हृदय विचार॥ रोग परिक्षक हो तुम भाई, किंतु दया तुमनें बिसराई। जिमि गणिका धनहीन न चाहे, तिमि तुम्हे दीन दुःखी नहीं भाहे ॥ पर विवेक धन लोभ न करई, धर्म चिकित्सा कहुं कहुं करहीं। निपुण चिकित्सक हो तुम भाई, धर्म बिना धिक्कार कहाई॥ (अपूर्ण.) શ્રી સુપાર્શ્વનાથ આરતિ, રચયિતા –કાલીદાસ નેમચંદ સધાણી. (મારવાડ) જય જય આરતિ સુપાર્શ્વ આણંદા, સુપાર્શ્વ છછુંદા, તુમ દીઠે અતિ હી આનંદા. જય જય. (૧) મુર્તિ મનોહર આપ બીરાજે, વંદન કરશું પ્રેમ ઉલ્લાસે. જય જય. (૨) પ્રતિષ્ઠીત રાજાના પુત્ર કહાવે, પૃથ્વી માતાના નંદન સુહાવા. જય જય (૩) વાણારસીનગરી જન્મ તુમારે, વર્ણકંચન શેભાને નહી પારે, જય જય. (૪) મેરવાડા ગામે આપ બીરાજે, મુતિ મનહર આનંદકારી. જય જય. (૫) આરતી કીંધી અતિ ઉલ્લાસે, ગુરૂ પૂર સહાય કાળીદાસે. જય જય. (૬)Page Navigation
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