Book Title: Jain Dharm Vikas Book 03 Ank 01
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 4
________________ નિધર્મ વિકાસ. ॥श्री आदिनाथ चरित्र पद्य ॥ (जैनाचार्य श्री जयसिंहसूरीजी तरफथी मळेलु.) (dis ५४ ३७५ था अनुसंधान.) यह सुनि हर्ष हुए महीपाला, तुरत चले तेहि बन विकराला॥ आगे दरश पड़े मुनिराई, देवनसे चहुं ओर धिराई। मधुर वाक्य उचरे जिनवाणी, श्रवण देव करते तेहिवाणी । मुनिहिं दर्श श्रद्धा उपजावा, वाणी श्रवण कर मन अस आवा। निस्परिग्रह निनर्म मुनिराई, निष्कषाय धन्य श्रुति गाई॥ पर में हूं माया कर दासा, पितुहिं मार्ग कर रीत विनासा। पर अबतो वृत है सुखकारी, दिक्षा सब नासत अंधियारी ॥ नगर पहुंच राज्य कर डोरा, सोंप कुंवर दिक्षा लूं भोरा । इमि मन ठान नगर चलि आवा, इहाँ कुंवर एक जाल बनावा ॥ राज्य लोभ पाप कर घोरा, मंत्री मंडल वस कर डोरा। इत वज्रजंघ श्रीमती रानी, हुए नींदवस दिक्षा ठानी। । रेन जहर कर धुमृ बनावा, मात पिता मारण मन आवा । गया धूम्र दम्पति कर नासा, जहर प्रभाव अडि तिन सासा॥ छट्ठा भव समाप्त. देह छोड़ कुरु क्षेत्रमें, युग्म रुप हो जाय । एक चिंतमें मरणकी, एकहिं गति कहाय ॥ ते आयू पूरी करी, पुनि त्यागी वह देह । सौधर्मी देवलोकमें, हुए दोऊ वह देव ॥ देव भोगको भोग कर, चव्य हुआ तिन जीव ।। - आये जम्बूद्वीपमें, विदेह क्षेत्र कर सीव ॥ क्षिति प्रतिष्ठित नगर सुहावा, सुविधि वेद्य घर जन्में आवा । जीवानन्द भया तेहि नामा, चार कुमर जन्में तेहि गामा॥ इशानचंद्र कनकावती रानी, तिन घर प्रथम कुंवर जन्मानी। नाम महीधर राजकुमारी, द्वितीय मंत्री सुबुद्धिकुमारा ॥ सागरदत्त घर तृतिय कुमारा, पूर्णभद्र नाम तिन प्यारा। धनशेठ घर चोथ कुमारा, शीलपुंज तिन नाम सुरवारा ॥ मा। . .

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