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જૈન દર્શનનું
[भू. ७
છે. આ ઉપરથી એ ફલિત થાય છે કે જૈન ધર્મ એ હિન્દુ ધર્મની શાખા છે એમ જે કહેવામાં આવે છે તે વિચારણીય છે. ડે. આનન્દશંકર બાપુભાઈ ધ્રુવના મતે તે જૈન દર્શને આવી
४ मा नथी मेम मेमो मा५ । म ( पृ. ६१७ )मा કરેલા નિમ્નલિખિત કથન ઉપરથી અનુમનાય છે –
१. हारा2 ई न्यायावतार पाति-वृत्तिनी ५. ससुम, માલવણિયાની હિંદી પ્રસ્તાવના (પૃ. ૯-૧૦)માંથી નિમ્નલિખિત પતિએ રજુ કરું છું –
"जैन तत्त्वविचार की स्वतंत्रता इसी से सिद्ध है कि जब उपनिषदों में अन्य दर्शनशास्त्र के बीज मिलते है तब जैन तत्त्वविचार के बीज नहीं मिलते । इतना ही नहीं किन्तु भगवान् महावीर-प्रतिपादित आगमों में जो कर्मविचार की व्यवस्था है, मार्गणा और गुणस्थान सम्बन्धी जो विचार है, जीवों की गति और भागतिक। जो विचार है, लाक की व्यवस्था
और रचना का जो विचार है, जड़ परमाणु पुद्गलों की वर्गणा और पुद्गल-स्कन्ध का जो व्यवस्थित विचार है, षड्द्रव्य और नवतत्त्व का जो व्यवस्थित निरूपण है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जैन तत्त्वविचारधारा भगवान् महावीर से पूर्व की कई पीढियों के परिश्रम का फल है और इस धारा का उपनिषद्-प्रतिपादित अनेक मतें। से पार्थक्य और स्वातंत्र्य स्वयंसिद्ध है ।"
જૈન ધર્મ એ બ્રાહ્મણ ધર્મ અને બૌદ્ધ ધર્મની વચ્ચેને દાર્શનિક मध्यम भाग मेम प्रो. होशिसे Religions of India (पृ. २८3 )मा युं छे.