Book Title: Jain Darshan ki Ruprekha
Author(s): S Gopalan, Gunakar Mule
Publisher: Waili Eastern Ltd Delhi

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Page 150
________________ 148 जैन दर्शन सत्य यह दूसरा व्रत सभी लोगों के पालन के लिए है। गृहस्थ के लिए इस व्रत का कठोर पालन आवश्यक नहीं है। इस व्रत के भाव का पालन करना ही बस आवश्यक है। चूंकि अहिंसा ही सबसे महत्त्व का व्रत है, इसलिए शेष सभी व्रतों का पालन इतना ही पर्याप्त है कि अहिंसा का व्रत खण्डित न हो। ऐसी परिस्थिति में जहां सत्य बोलने से हिंसा या हत्या हो सकती है; जैसे, (हत्या करने के लिए पीछे पड़े हुए डाकुओं से बचने के लिए) जब कोई आदमी छिप जाता है तो उसका स्थान न बताने में जो जानबूझकर असत्य बोला जाता है वह नैतिक दृष्टि से उचित है। ऐसी स्थिति में झूठ बोलने से हत्या होने से रुकती है, इसलिए यह उस सचाई से बेहतर है जिससे कि हिंसा या हत्या हो सकती है। इसी प्रकार, कोई जानवर झाड़ी में छिप गया है और शिकारी को इसकी जानकारी नहीं है, तो ऐसी स्थिति में सत्य बात बताने से उस जानवर की हत्या हो सकती है। अस्तेय इस व्रत का अर्थ है कि आदमी को केवल अपनी सम्पत्ति भोगनी चाहिए; दूसरे का हथियाने की चाह नहीं रखनी चाहिए। व्यापार और लेन-देन में किये जानेवाले बुरे कर्म, जैसे, माल में मिलावट करना, ग्राहक को उसके पैसों के बदले में पूरा माल न देना, ठीक से माप-तौल न करना तथा काले बाजार में उलझना, ये सब स्तेय यानी चोरी के काम कहलाते हैं। ऐसे बुरे कर्मों से सावधानीपूर्वक बचने से ही अस्तेय व्रत का पालन होता है। पुन: इस व्रत के पालन के मामले में भी गृहस्थ की अपनी कुछ सीमाएं हैं । इसलिए उससे केवल सापेक्ष पालन की ही आशा की जाती है। गृहस्थ के लिए इस व्रत के पालन का अर्थ है-न दी गयी वस्तुओं को न लेना और दूसरों की गिरी हुई, छूटी हुई या खोयी हुई वस्तुओं को न उठाना। इसी प्रकार गृहस्थ को चाहिए कि वह वस्तुओं को सस्ते दामों पर न खरीदे यदि सस्ते 8. जैन दार्शनिक इस बात को भलीभांति जानते थे कि अपने दैनिक जीवन में गृहस्य कटु वचनों का पूर्ण रूप से त्याग नहीं कर सकता, विशेषतः अपने घर में धंधे में और जीवन की सुरक्षा के मामले में । अतः इन मामलों में अपवाद बनाये गये थे और अन्य 1 मामलों में असत्य से बचने के नियम बनाये गये थे। निषेधार्थक रूप में सत्य का यह भी अर्थ है कि आदमी अतिशयोक्ति न दिखाये और अवगुण खोजने तथा असभ्य बातचीत में न उलझे । सत्य का स्पष्ट अर्थ है उपयोगी, संतुलित तथा सारगर्भित शब्दों को बोलना ।

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