Book Title: Jain Darshan ka Adikal
Author(s): Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 23
________________ जैन आगम में लिखने वालों का भी यही आग्रह रहता है कि वह जो कुछ कह रहा है वह भ. महावीर के उपदेश का ही अंश है। नतीजा यह है कि साधारण मनुष्य विवेक नहीं कर सकता कि भ. महावीरने क्या कहा और क्या न कहा । यह विवेक मूलग्रन्थों के तटस्थ अभ्यास के द्वारा ही हो सकता है और इसी ओर ध्यान दिलाना ही मेरा प्रस्तुत व्याख्यान का उद्देश्य मैंने माना है । और संक्षेप में यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि उनका मौलिक उपदेश क्या था । विद्वानों से मेरा निवेदन है कि वे इस दृष्टि से अपने संशोधन में आगे बढे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50