Book Title: Jain Darshan Author(s): Mohanlal Mehta Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 7
________________ शुभाशीः मुझे प्रसन्नता है, कि जैन विद्वान, आज के युग की नित्य-नूतन साहित्यिक प्रगति को देख कर अपनी शक्ति का सत्प्रयोग ठीक दिशा में करने लगे हैं। अपने धर्म, दर्शन तथा संस्कृति के गौरव की ओर उनका ध्यान केन्द्रित होने लगा है। डाक्टर मोहन लाल जी मेरे निकट के परिचितों में से एक हैं। उनका मृदु स्वभाव, कोमल व्यवहार, और उनकी गहरी विद्वत्ता आज के समाज के लिए एक सन्तोप की वात है । विद्वत्ता के साथ विनम्रता महेता जी की अपनी एक अलगही विशेषता है । कार्य-पटुता और कार्यक्षमता--इन दोनों गुणों ने ही मेहता जी को इतना गौरव प्रदान किया है। डाक्टर मेहता अभी तरुण हैं । अतः भविष्य में वे और भी अधिक प्रगति कर सकेंगे, इसमें सन्देह नहीं किया जा सकता। ___ 'सन्मति ज्ञान पीठ, आगरा' से उनका जैन-दर्शन प्रकाशित हो रहा है । यह ग्रन्थ मुझे बहुत पसन्द है। क्योंकि इसमें जैन दर्शन के प्रायः समग्र पहलुओं पर सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला गया है। प्रमाण, प्रमेय, नय और सप्त भगी जैसे गम्भीर विषयों पर मेहता जी ने लिखा है, और काफी विस्तृत, साथ ही रोचक भाषा में लिखा है। यह ग्रन्थ भाव, भाषा और शैली-सभी दृष्टियों से सुन्दर है । जैन दर्शन की उच्च कक्षाओं में स्थान पाने योग्य है। __जैन-दर्शन जीवन-दर्शन है । वह व्यर्थ के काल्पनिक आदशों के गगन की उड़ान नही, किन्तु कदम कदम पर जीवन के प्रत्येक व्य . रेकी वस्तु है । दर्शन का मूल अर्थ हप्टि है,इस अर्थ में जैन-दर्शन ने के लिए मनुष्य को विवेकहाष्ट देता है । आदमी जब स्त्र पहचान जाता है, तभी वह अपने जीवन का एक उद्देश्य और पूरी शक्ति के साथ उस ओर अग्र-चरण होता है। मेहता जी दर्शन के उक्त पक्ष को समझाने में काफी सफलPage Navigation
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