Book Title: Jain Darshan Author(s): Mohanlal Mehta Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 5
________________ प्रकाशक के दो बोल याधुनिक युग की एक माँग है -- एक सर्वोच्च अपेक्षा है - प्रत्येक दर्शन का एक प्रतिनिधि ग्रन्य; तत्त्व-चिन्तकों के सम्मुख हो । इसी दिशा में ज्ञान पीठ की ९ से जैन- दर्शन का प्रतिनिधि ग्रन्थ, जैन-दर्शन के नाम से प्रस्तुत करते हुए मैं परम श्रह्लाद की अनुभूति कर रहा हूँ । लेखक ने जैन दर्शन के सम्पूर्ण तत्त्वों का सूक्ष्म चिन्तन- मूलक सुन्दर, सरस, भाव-भाषा और शैली की दृष्टि से अधुनातम ग्रन्थ प्रदान किया है । मैं मानता हूँ यह जैन दर्शन के तत्त्वों का सर्वांगपूर्ण विश्लेषण है, और विद्वान् लोग इसे पसन्द करेंगे । प्रस्तुत ग्रंथ गत सन् १९५८ के मार्च महीने में ही पाठकों की सेवा में पहुँच जाता, किन्तु प्रेस सम्बन्धी अड़चन तथा प्रूफ संशोधनार्थ मेटर लेखक के पास पहुंचते रहने से विलम्ब होता गया । ग्रस्तु जैन दर्शन की अत्यधिक मांग होने पर भी हम समय पर पाठकों की ज्ञानपिपासा शान्ति में योग न दे सके, अतः पाठकगरण हमें क्षमाप्रदान करें । ग्रन्थ का यह प्रकाशन लेखक, प्रकाशक, सम्पादक या आलोचकों से नहीं नापा जा सकता । जैन दर्शन अपने आप में कितना पूर्ण है - यह विद्वानों का चिन्तन ही बता सकेगा । अन्त में मैं कृतज्ञता - प्रकाशन का यह लोभ संवरण नहीं कर सकता कि प्रस्तुत प्रकाशन का यह नयनाभिराम सौन्दर्य तथा कलात्मक वर्गीकरण उपा ध्याय श्री जी के अन्तेवासी शिष्य सुवोध मुनि जी के द्वारा ही मुखर हुआ है । मन्त्री - सोनाराम जैन सन्मति ज्ञान- पीठ, ग्रागराPage Navigation
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