Book Title: Jain Bhajan Sangraha 01
Author(s): Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
Publisher: Fatehchand Chauthmal Karamchand Bothra

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Page 13
________________ मति, श्रुति अज्ञान, अचक्षु दर्शन । ४ चार उपयोग किण में पावे ? दश गुण स्थान में-४ ज्ञान ( केवल बरजौने ) ५ पांच उपयोग किण में पावे ? बेइन्द्री में मति, श्रुति जान, मति, श्रुति अज्ञान, अचक्षु दर्शन। ६ छव उपयोग किण में पावे ? मिल्थ्याती में ३ अज्ञान, ३ दर्शन ( केवल बरजीने )। ७ सात उपयोग किण में पावे ? छ? गुणस्थान में-केवल बरजौने ४ ज्ञान ने ३ दर्शन । ८ आठ उपयोग किण में पावे ? अचर्म में -३ . अज्ञान, ४ दर्शन, १ केवल ज्ञान। ६ नव उपयोग किण में पावे ? देवता में (मन पर्यव, केवल ज्ञान, केवल दर्शन टला ) १० दश उपयोग, किण में पावे ? स्लोवेद में ( केवल ज्ञान, केवल दर्शन टलाा)। ११ इग्यारह उपयोग किण में पावे ? अभाषक में ( मन पर्यव टलो)। १२ बारह उपयोग किण में पावे ? समचे जीव में। १० दशवे बोले कर्म आठ ८

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