Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ जिस भाव में मोक्ष प्राप्त करा देने की सामर्थ्य है वह कौन सा भाव है जिस भाव पर दृष्टि देने से स्वर्ग भी मिल जाता है। यों ही जिस भाव में मोक्ष प्राप्त करा देने की सामर्थ्य है वह कौन सा भाव है जिस भाव पर दृष्टि देने से स्वर्ग भी मिल जाता है और मोक्ष भी मिलता है? अपने-अपने पद और योग्यता के अनुरूप वह भाव है अपने आपकी सच्ची परख। जो पुरूष अपनी परख नही कर पाते वे कितनी ही लोक चतुराई कर लें पर शांति नही मिल सकती। इस तरह सबसे पहिले अपनी सच्ची श्रद्वा करना जरूरी है मै पुरूष हूं, मै स्त्री हूं, मैं अमुक की चाची हूं, अमुक की मां हूं, अमुक का चाचा हूं, इत्यादि किसी भी प्रकार की अपने में जो श्रद्वा बसा रक्खी है उसका फल क्लेश ही है। कहाँ तो अपने भगवान तक पहुंचना था और कहाँ इस शरीर पर ही दृष्टि रख रहे है। दृष्टिकी परख – एक राजसभा में बड़े-बड़े विद्वान आये थे। वहाँ एक ऋषि पहुंचा जिसके हाथ पैर, पीठ, कमर सभी टेढ़े थे और कुरूप भी था। वह व्याख्यान देने खड़ा हुआ तो वहाँ बैठे हुए जो पंडित लोग थे वे कुछ हँसने लगे क्योंकि सारा अंग टेढा था। वह विद्वान ऋषि उन पंडितो को सम्बोधन करके बोला-हे चमारो! सब लोग सुनकर दंग रह गये कि यह तो हम सभी लोगों को चमार कहते है। खैर, वह स्वंय ही विवरण करने लगा। चमार उसे कहते है जो चमड़े की अच्छी परख कर लेता है, तो यहाँ आप जितने लोग मौजूद हैं सब लोग हमारे चमड़े की परख कर रहे है। आप लोग हमारे शरीर का चमड़ा निरख कर हंस रहे है, तो जो चमड़े की परख करना जाने कि कौनसा अच्छा चमड़ा है और कौन सा खराब चमड़ा है उसका ही तो नाम चमार है। तो सभी लोग लज्जित हुए? अब अपनी अपनी बात देखो कि हम चमड़े की कितनी परख करते है और आत्मा की कितनी परख करते है? इसमें कुछ डरकी बात नही है, अगर चमड़े की हम ज्यादा परख करते हैं तो हम कौन है? कह डालो अपने आपको कुछ हर्ज नही है। खुद ही कहने कहने वाले और खुद को ही कहने जा रहे है, खूब दष्टि पसारकर देखो कि हम कितना चमड़े की परख में रहा करते है? यह मैं हूं, यह स्त्री है, यह पुत्र है, इस चाम की चामको देखकर व्यवहार में बसे हुए जो जीव हैं उन्हे ही सब कुछ माना करते है, उस जानने देखने, चेतने वाले को दष्टि में लेकर कोई नही कहता है। जो मिल गया झट पहिचान गये कि यह मेरे चाचा का लड़का है। इस तरह से सभी जीव इस चमडे की परख करते रहते है, इसका ही तो इन्हे दुःख है। शुद्ध परिणाम की सामर्थ्य - भैया ! हम आप सभी इसी बात में आनन्द मानते हैं कि खूब धन बढ़ गया, खूब परिवार बढ़ गया पर जिस भाव में आनन्द है उसका अज्ञानियों को पता ही नही है। ज्ञानियो को स्पष्ट दीखता है कि सच्चा आनन्द तो इससे ही मिलेगा। वह भाव है एक ज्ञान प्रकाश अमूर्त किसी भी दूसरे जीव से जिसका रंच सम्बन्ध नहीं, ऐसा यह मैं केवल शुद्ध प्रकाशात्मक हूं, ऐसे ज्ञानस्वभाव में परिणाम जाय तो यह परिणाम मोक्ष को देता है, फिर स्वर्ग तो कितनी दूर की बात रही, अर्थात वह तो निकट और अवश्यभावी है। जो मनुष्य बलशाली होता है वह सब कुछ कर सकता है। सुगम और दुर्गम सभी कार्यो को सहज ही सम्पन्न कर सकता है। कौन पुरूष ऐसा है जो कठिन कार्यो के करने की तो 12

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 231