Book Title: Indian Antiquary Vol 02
Author(s): Jas Burgess
Publisher: Swati Publications

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Page 282
________________ 256 • THE INDIAN ANTIQUARY. [SEPTEMBER, 1873. श्री राणा विजय उसदाओ प्रतष्टा कराही भेडो सदायो मु राज्येः ॥ आयस गट देमरो हजार १रो मोतीचोकमो बाजु चतुरनाथेनः बंद नथ जमावरी मोरा हेमरोनी लापनारी परमाश्रीपाल्हण माला नंग 8६ सदाओ नोबत मोटी हार्थी चतुक्यिकाका उपली जोडी साई प्रतष्टा संवत १८७४ रावे. रावितः ॥ श्री॥ साख सुद १५ हुई कारखानो सारोपासो करायोछे सू० न्न नर्त्य सीगणोत जेता देवडा बुमजी रूभात सदुरोछो प्रणमतिः ॥ मकता मुंताआ बुरा कारखाने उपर चापर कराए सुभं भवतुः | दसकतीघवीपोमारी On the right side of the entrance to the tem- On another slab, 16 by 27 inches, on the ple, is the following, on a slab 9} inches by | same side, is the following, "recording the erec151,-recording the modern repair of the old tion (in Sarm. 1394) of the temple by Mahadeva building and erection of others by command of Padhi, by the patronage of Kühnada Deva the Gaman Siñha, the son of Mâhârâva Sava son of Teja Siñha the Châhuman and prince of Siñha of Sirohî in Sam. 1875 (A.D. 1818) - Chandravati, as well as the grant of several villages by Teja Siñha, Kabnada Deva, and the ॥ श्रीवसिष्ठमुनीजी Chanhân Sâmanta Siñha. The priest is an ॥ सौरोहीनगरे माहारावजीश्रीसक्सी. enemy to the Jaina Sect, as he congratulates पनीकुवरजीश्रीगुमानसोपजीवचनात् संवत् the world upon the recovery of religion from heretics and opposers of the Srutis and Smritis. २८५रा माहावद ५ सनु प्रासादस. In S. 1506, the Råņi Kumbha Karna, the son of दराभो कारखानो कराओ रूपी हजार Mokala Raņâ, grants a village for the celebration २० लगाया सदाव्रत सरू काओ गोम of the Adinatha Yatra. In S.1589, the Maharaja वाकुंड सदराओ धरमसाला कराई झं Akhi erects a temple or a fountain"t: यो नमः श्रीवशिवाय ॥ निदोषःसतोदितमितकलः श्रीमान् कलकोद्वितः तुल्यः पक्षयुगेपि हर्षितवपुर्मि॥ वप्रतापोदये । अत्यंत कविभिबुधरनुदिनं संसेवितो भूरिभिः नव्यः कोपि विराजते दिनपतिः पाटिर्महादेव॥कः॥१यो मनः कलिकईमे कवलितः पापंडिसत्वैरतिकोरेः किं च गतः श्रुतिस्मृतिकथा वैकल्यमभ्यागतः। श्री ॥ मत्पादिधरासुरेण सुगुरुदत्य पुष्ट कृतः सच्छंदं परिवंभ्रमाति भुवने दानैरनेकैर्वृषः ॥ २ विदितवचनतत्वा ॥ श्रावशिवायभंतः निखिलभुवनकम्मरंभानवाहदक्षः । अशुभहरणधारी धीरतां यः प्रयातः स जयति भुबने ने ॥श्रीमहादेवपादिः॥ ३ किंच॥सरखती यस्य पुरा जनित्री गे.पालसूनुः स विराजते वेदाता दिनानां सहकनिष्ठः ॥श्रीमान्महादेवचिरायजीवी ॥ ४गांता पयते लक्ष्मीप्रजातं यस्य कार्चनं श्रीमदशिष्ठभुवनं सग्मादपि मनारमं ॥५ गुरोः प्रसादान्मधुसूदनस्य नरोत्तमो वे परमो गुरूमें । तयोः प्रसादावनं सुरम्य पश्यतु लोकाः परमं पवित्र । ॥सस्तिश्रीनृपविक्रमकालातीतसंवत् १३९४ वर्षे वेशापशुदि १०'गुरावधेह श्रीचंद्रावत्यां चाहुमानवंशोबरण ॥धेरेयराजश्रीवेजसिंहसुसराजश्रीकान्हदेवे राष्टुं प्रशासति सति- पाटिश्रीमहादेवन इदं श्रीवसिष्ठस्य । ॥धमायतनं कारापितामत्यर्थः ॥ तथा च॥ चहुमानज्ञातीयराजश्रीतेजसिंहेन सहस्तेन ग्रामत्रय दत्-बिटु॥५ ॥ द्वितीयं च्यातुलिग्रामं ॥२ तृतीय तेजलपुरमिति ॥ ३ तथा देवाश्रीनिहुणाकेन सहस्तेन साहलूणग्राम वर्ग ॥ ॥ थाराजश्रीकान्ददेवेन सहस्तेन वीरवालाग्राम दत्त | नया चाहुमानजानीयराबीसामनसिंहन लुहुलि ॥छापुलि। किरणथल । ग्रामवयं दत्वं ॥ शुभं भवतु ॥७॥ ॥संवत् १५०६ वर्षे भाषाढसुदै । गुरुदिने राणाप्रीमोकलसुतराणाश्रीकुंभकर्णसहस्तेन॥ ॥पुरसाडीयाम दत्री श्रीभादिनाथयात्राभाविवण प्रतिदुगणी ४ पाटिश्रीमजिनाथहस्ते शुभं भवतु ॥ ॥संवत् १५८९ वर्षे वैशाष सुदि १५ पूर्णगुरुवारे सस्तिश्रीमहाराजश्रीमषिराबचिरंजीची गभषकामनांवराक्ति ॥पादिश्रीरायमलकरापितं पाराजीस्वहस्त.२९०५ देवकापरू|शुभं भवतु ॥ And on a similar tablet on the left side, some- ing Arbuda originally from the Himalaya range, what damaged at the bottom, is another dated of which it was a part; it records also some S. 1523 and 1524: “It consists of a panegyrio pecuniary gifts made by different chiefs, by the of the Muni Vagishtha, and narrates his bring. Mahiran Kheta, and Vira Rawal." • Rs.rol. XVLD-14.No. . Renuhop.No . 1 .Ram. PNom.

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