Book Title: Harivanshpuran Author(s): Jinsenacharya, Pannalal Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 2
________________ हरिवंशपुराण 'हरिवंशपुराण' आचार्य जिनसेन (आठवीं शती) की अप्रतिम संस्कृत काव्यकृति है। इसमें बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के त्यागमय जीवनचरित के साथ-साथ कृष्ण, बलभद्र, कृष्ण 'के पुत्र प्रद्युम्न तथा पाण्डवों और कौरवों का लोकप्रिय चरित बड़ी सुन्दरता से अंकित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस विशाल ग्रन्थ में सम्पूर्ण हरिवंश का परिचय तथा जैनधर्म और संस्कृति के विभिन्न उपादानों का स्पष्ट एवं विस्तार से विवेचन हुआ है। भारतीय संस्कृति और इतिहास की बहुविध सामग्री इसमें भरी पड़ी है। 'हरिवंशपुराण' मात्र कथा-ग्रन्थ नहीं है, यह उच्चकोटि का महाकाव्य भी है। छ्यासठ सर्गों में विविध छन्दों में निबद्ध इस विशाल ग्रन्थ में लगभग आठ हजार नौ सौ श्लोक हैं। मूल संस्कृत, हिन्दी अनुवाद, महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना तथा अनेक परिशिष्टों के साथ सुसम्पादित यह ग्रन्थ पुराण कथाप्रेमियों के लिए जितना उपयोगी है, उससे कहीं अधिक इसकी उपयोगिता भारतीय संस्कृति और इतिहास के अनुसन्धित्सुओं के लिए है। प्रस्तुत है ग्रन्थ का यह एक और नया संस्करण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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