Book Title: Gwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 5
________________ की ताम्र प्रतिमाएँ प्रस्तुत की गई हैं। ये चैत्य एवं यह प्रतिमा जैन कास्मोलॉजी के अनुसार वणित तीर्थकर प्रतिमाएं 10-11 वीं सदी के लगभग किसी द्वीपों में से एक द्वीप नन्दीश्वर द्वीप की प्रतीक स्वरूप समय की प्रतीत होती हैं। है। इस द्वीप में 52 देवों एवं पवित्रात्माओं द्वारा जिन (तीर्थकर) पूजा की जाने का जैन शास्त्रों में वर्णन नन्दीश्वर प्राप्त होता है। तदनुसार यह द्वीप मन्दिरों, सभागृहों; __ कला की दृष्टि से इनमें ताम्रचैत्य, प्रमुखतः नाट्यगृहों; सज्जित मंचों; सुन्दर स्तूपों, मूर्तियों एवं उल्लेखनीय है। यह नीचे वर्गाकारों तथा ऊपर पिरा- प्रतिमाओं, पवित्र चैत्य वक्ष, इन्द्रध्वज तथा कमलमिड के आकार का बना है। 1 फीट 6.75 इंच ऊँचे युक्त झील आदि से युक्त है। इन सभी मन्दिरों में अर्हत इस नन्दीश्वर चैत्य के वर्गाकारी आधार का क्षेत्रफल एवं जिन से सम्बन्धित पवित्र दिनों पर आठ दिवसीय 6.25 वर्गइंच है। नीचे के भाग में तीन वर्गाकार पर्व मनाए जाते हैं। जैन धर्मावलम्बी इस वर्णन के मंजिलें हैं, तीसरे वर्ग के ऊपर पिरामिड आकार का अनुसार वर्ष में तीन बार आषाढ़, कार्तिक तथा फाल्गुन आमालक युक्त गुम्बद बना है। प्रत्येक वर्ग के चारों माहों में अष्टमी से पूणिमा तक आठ दिवसीय अष्टाकोने पर स्तम्भ बने हैं। इन वर्गाकारी मंजिलों की निका पर्व मनाकर इस अवसर पर व्रत एवं पूजा आदि ऊँचाई नीचे से ऊपर की ओर, क्रमशः कम है। इन क ते हैं । वर्गों में चौबीस तीर्थ करों के चित्र हैं, सबसे नीचेवाले (तल) वर्ग में प्रत्येक ओर खडगासन मदा में तीन-तीन चैत्य पर अंकित शब्द क्षतिग्रस्त हो गए हैं। तल तीर्थ कर इस प्रकार कुल बारह तीर्थकर मुद्राएँ बनी मंजिल पर एक ओर "..."हीं .. ..."ना..दा... धी" हैं। इसके ऊपरवाले (मध्य) वर्ग पर प्रत्येक ओर शब्द पढ़े गये हैं, इनके आधार पर कई पुरातत्व वेत्ताओं पद्मासन (सम्प्रयँक) मुद्रा में दो-दो तीर्थकर इस प्रकार ने इसे 4-5वीं शती में निर्मित माना है, तथापि यह आठ तीर्थ कर मुद्राएँ बनी हैं। यह वर्ग ऊँचाई में तल चैत्य 9.10वीं शती के लगभग या इससे पूर्व का वर्ग की अपेक्षा कम ऊंचा है। इसके भी ऊपर सबसे अवश्य है । कम ऊँचाई वाले तीसरे वर्ग में प्रत्येक ओर एक-एक इस प्रकार कुल चार तीर्थकर मुद्राएँ अंकित हैं। इनमें छठवें तीर्थ कर पद्मप्रभतीर्थकर पार्श्वनाथ की मुद्रा सभी से अलग प्रकार की अन्य चार जिन प्रतिमाओं में एक छठवें तीर्थ कर होने के कारण आसानी से पहचानी जा सकती है। पदमप्रभ की है जिसकी ऊँचाई आधार सहित साढ़े पांच इसमें शीर्ष के ऊपर पंचफणी सर्प अंकित है। प्रत्येक इंच, तथा बिना आधार के साढ़े तीन इंच है । पद्मासन तीर्थकर मुद्रा के वक्ष पर प्रतीक स्वरूप श्रीवत्स अंकित (सम्प्रयंक) अवस्था में बैठी इस मुद्रा के पृष्ठ भाग में नालन्दा कांस्य की शैली के चँवर बने हैं। आधार के 10. "Jaina Images & Places of first class Importence", T. N. Ramachandran. (Presidential adress during the All India Jaina Sasana Conference 194; Held on the occasion of the 2500th Anniversary of the first Preaching of lord Mahavir Swami; Calcutta) Publisher-Hony. Secy. Vira Sasana Sangha, 82 Lower Chitpur Road, Calcutta. ३४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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