Book Title: Gwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ प्रमुख विशेषता यह है कि इनका निर्माण राजाओं ने वास्तव में यह 57 फुट ऊँची है । इसकी चरण चौकी नहीं वरन् तत्कालीन जैन व्यापारियों व अन्य पर सं. 1497 लिखा है। वर्तमान में इसके नीचे का श्रावकों ने करवाया। अनेक जैन महिलाओं ने भी इसके कुछ भाग मिट्टी में दब गया है। यह चरणों के पास निर्माण के लिये दान दिये थे। इस कार्य में हजारों 9 फूट चौड़ी है। यहीं 22 नम्बर की नेमिनाथ के शिल्पकारों ने भाग लिया, जिनके कुशल हाथों ने पदमासन मूर्ति है। जो 30 फुट ऊँची है। नेमिनाथ की लगभग डेढ़ मील लम्बे गोपाचल दुर्ग को उत्कीर्ण करने इतनी विशाल मूर्ति शायद ही अन्यत्र कहीं हो । योग्य कोई कोना शेष नहीं छोडा। इन सारी प्रतिमाओं को 5 समूहों में विभाजित किया जा सकता है। (2) दक्षिण पश्चिम सम हः -- यह खंभा ताल के नीचे उरबाई द्वार की बाहर की शिला पर है। इसमें (1) उरबाही सम हः-उरबाई द्वार पर कुल 22 5 मूतियाँ हैं। 1 नम्बर के प्रतिमा समूह में एक स्त्री, जैन मूर्तियाँ हैं। इनमें से 6 मुर्तियों पर सं. 1497 पुरुष तथा बालक की मूर्तियाँ हैं । 2 नम्बर में एक 8 (सन् 1440 ई.) से सं. 1510 (सन् 1453 ई.) फूट लम्बी लेटी हई स्त्री की प्रतिमा है जो 8 फुट लम्बी के अभिलेख खदे हैं । इनमें 20 नम्बर की आदिनाथ की है। इस पर ओष किया हआ है। प्रारम्भ में कुछ लोग मति सबसे विशाल है। बाबर ने अपने "बाबरनामा' इसे बुद्ध भगवान की मूर्ति बताते थे। परन्तु विशेष में इसकी ऊँचाई 20 गज अनुमान की थी। परन्तु शोध करने के पश्चात इतिहासकार इसी निष्कर्ष पर (ग्वालियर दुर्ग पर उत्थित पदमासस मुद्रा में विशाल जैन प्रतिमा) ३४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24