Book Title: Gwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 15
________________ करवाई जिसमें करोड़ों रुपये व्यय हुये । एक अन्य अग्र- सं. 1521 में "ज्ञानार्णव" नामक ग्रन्थ की एक वाल वंशज गोयल गोत्री खल्हा नामक जैन सज्जन ने प्रतिलिपि लिपिबद्ध की गई। भ. गुणभद्र ने भी भी गोपाचल के बाहरी ओर गुफा मन्दिर बनवाकर ग्वालियर निवासी जैन श्रावकों की प्रेरणा से अनेकों आचार्य महीचन्दजी महाराज द्वारा प्रतिष्ठा करवाई। कथाओं की रचना की। इसमें भी करोड़ों रुपये व्यय हये । सं. 1515 में बाबड़ी की ओर गोलालारे वंशज कमूद चन्द्र ने पार्श्वनाथ की ___ कीतिसिंह की मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र कल्याण मल (मल्लसिह) ने शासन की बागडोर संभाली। मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई जिसमें सिंहकीति नामक इन्होंने सं. 1481 ई. से 1486 ई. तक ही शासन भट्टारक ने भी भाग लिया। किया। इनके समय में कोई उल्लेखनीय घटना नहीं सं. 1521 में ग्वालियर के जैसवाल कूल भूषण हुई। संभवत अपने शासनकाल के 7 वर्षों में इन्होंने कीर्तिसिंह के उन कार्यों को, जो अधूरे थे, पूर्ण किया। उल्हा साहू के नेष्ठ पुत्र साहू पदमसिंह ने अपनी चंचल लक्ष्मी का उपयोग करने के लिये 24 जिनालयों का इनका काल बहत शान्तिपूर्वक बीता। इनके काल का सं. 1552 का केवल एक ही मूर्तिलेख उपलब्ध है।" निर्माण करवाया तथा एक लाख ग्रन्थ लिखवाकर मेंट किये । इनके राज्यकाल में जैन साहित्य रचना का _सन् 1486 ई. में कल्याणमल की मृत्यु के पश्चात् भी कार्य हुआ। कविवर रईघू ने इनके राज्य काल उनका पुत्र मानसिंह गद्दी पर बैठा । यह राजा, बड़ा में "सम्यक्त्व कौमुदी" तथा "श्रावकाचार" की रचना प्रतापी, संगीत प्रेमी और कला प्रेमी था और जिस की। किसी प्रकार से अपने पूर्वजों द्वारा संरक्षित एवं संवर्धित राज्य को स्वतंत्र रखने में समर्थ हो तुका था । उपरोक्त मन्दिरों में से कुछेक समाप्त हो गये हैं इसे अपने शासनकाल में अनेकों बार बहलोल लोदी और कुछ का जीर्णोद्धार होकर नये मन्दिर बन गये हैं और उसकी मत्यू पर उसके पूत्र सिकन्दर लोदी से जो अभी भी ग्वालियर में अपने परिवर्तित रूप में स्थित लोहा लेना पड़ा। इसने संगीत और कला को अपना हैं। साहित्य का अधिकतर भाग नष्ट हो गया है, बहत । सरक्षण प्रदान किया। इसके काल में यहाँ एक संगीत कम ही शेष है। . विद्यालय भी था। सुप्रसिद्ध गायक तानसेन ने इसी 32. विज्जुल चंचलु लच्छीसहाउ, आलोइबिहुउ जिणधम्ममाउ। जिण गंथु लिहावउ लक्वु एकु, सावय लक्खा हारीति रिक्खु । मुणि भोजन भुंजाविय सहासु, चउवीस जिणालउ कि उ सुमासु - जैन ग्रन्थ प्रशस्ति, जैन ग्रन्थ प्रशसित सं०, पृ० 144 बाराबंकी शास्त्र भंडार. । 33. यह ग्रन्थ जैन सिद्धान्त भवन आरा में उपलब्ध है। 34. जैन लेख संग्रह -पूर्णचन्द्र नाहर भाग 2 । 35. ___ एक सोबनकी लंका जिसि, तो वरू राउ सबल वरवीर। भुयबल आयु जु साहस धीर, मानसिंह जग जानिये । ताके राज सुखी लोग, राज समान करहिं दिनभोग । जैनधर्म बहुविधि चलें, श्रावगदिन जु करें षट् कर्म । -नमीश्यवर गीत ३५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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