Book Title: Gwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 17
________________ की। इसमें जैनियों के 23 वें तीर्थंकर नेमिनाथ का जीवन-परिचय अंकित है ।" उधर सिकंदर लोदी की मृत्यु के पश्चात् इब्राहीम लोदी ने शासन संभालते ही अपने पूर्वजों की महत्त्वा कांक्षा को साकार करने के उद्देश्य से ग्वालियर दुर्गं पर पुनः आक्रमण कर दिया। इसी बीच सन् 1519 ई. में महाराजा मानसिंह की मृत्यु हो गई और तलवारों की छाया में उनके पुत्र विक्रमादित्य गद्दी पर बैठे। उनके नेतृत्व में राजपूत जी तोड़कर लड़े पर अपने से अनुपात में कई गुनी लोदियों की सेना पर विजय न पा सके और लोदियों के सेनापति हुमायूं से सन्धि करना पड़ी । वे अब शमसाबाद के एक जागीरदार मात्र रह गए और उन्हें लोदियों की ओर से पानीपत में बाबर के विरुद्ध युद्ध करने भेजा गया । इस बीच तंवर वंश के एक दूसरे तेजस्वी राजकुमार रामसिंह तोमर ने ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण कर किले के अफगान अधिकारी तातार खां को परास्त कर दुर्ग पर अपने झण्डे गाड दिये । लगभग इसी काल में सन् 1523 ई. के आसपास कभी पोल मोहम्मद गौस नामक फक्कड़ साधू गाजीपुर (मूलनाम कुमारगढ़) से ग्वालियर आ बसे । वे आकर चन्द्रप्रभू के मन्दिर में ठहरे । यह चन्द्रप्रभू का मन्दिर वही विशाल जैन मन्दिर था जिसे वीरमदेव तोमर के मंत्री कुश राज ने बनवाया था ।" यह मन्दिर आजम हुमायूँ के आक्रमण के समय (सन् 1518 23 ) क्षतिग्रस्त कर दिया गया था । शेख गौस ने इसी में अपनी खानकाह बनाई और आज वहीं उसका मजार बना है। 39. इन पंक्तियों के लेखक ने सन् 1669 में प्रकाशित ग्वालियर जैन डायरेक्टरी में अपने एक लेख "अतीत की ओर एक दृष्टि" में इतिहासकारों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था, और बड़ी प्रसन्नता का विषय है। कि सन् 1976 में प्रकाशित श्री हरिहर निवास जी द्विवेदी की पुस्तक " ग्वालियर के तौमर" में इस सम्बन्ध में उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाण एवं तथ्य उजागर हुए हैं। इस सम्बन्ध में खड्गराय की पुस्तक " गोपाचल आस्थान" में वर्णित सूत्र पर्याप्त प्रकाश डालता है : Jain Education International जो विधिना विधि आपन करें, सोई होई न टारी टरं । देखो विधना को संजोग, जनमें कहूँ कहूँ रहैं लोग || पूंरव गाजीपुर को ठाऊ, कुमरगढ़ा ताको रहि नाऊ । मोहम्मद गौस जहां ते आई, रहे ग्वालियर में सुख पाइ ॥ यह ग्रन्थ अभी आमेर भण्डार में सुरक्षित है । संवत पन्द्रह से छे गमें, गुनहत्तरि ताऊपर भने भादों वदि पंचमीवार, सोम नवितु रेवती सार ॥ ग्वालियर के तोमर - हरिहरनिवास द्विवेदी पृ० 63 1 41. पूर्वोक्त, पृ० 203 – 41 40. विधिना विधि ऐसे हुई सोई भई जु आई । चन्द्रप्रभू के थोहरें रहे गौस सुख पाई ॥ इस बीच तातार खां दुर्ग में ही छिपा रहा और जैसे ही बाबर दिल्ली का मम्राट बना, तातार खां ने उसे गुप्त संदेश भेजकर उससे सहायता प्राप्त की और मोहम्मद गौस साहब की कृपा से ख्वाजा रहीम और शेख गोरन के नेतृत्व में विशाल सेना से दुर्ग पर आक्रमण कर उसे अपने आधिपत्य में ले लिया और महाराजा रामसिंह तोमर मेवाड़ की ओर भाग गये । इस प्रकार सन् 1559 में दुर्ग पुनः मुगलों के हाथ में चला गया। उधर विक्रमादित्य पानीपत युद्ध में वीरगति पा गये । इसी के साथ ही तोमर वंश का सूर्य सदा के लिये अस्त हो गया । इसके साथ-साथ ही धार्मिक, साहित्यिक एवं ३५३ , For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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