Book Title: Gwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 22
________________ करने के लिये उन्हें बड़ागांव जाना पड़ता था । अतः उन्होंने अपने पुत्र से मुशर में एक मन्दिर स्थापित करने को कहा। पुत्र ने अपनी माँ की सुविधा की दृष्टि से मुरार में एक कमरे के अन्दर मूर्ति प्रतिष्ठा कराकर मन्दिर की स्थापना की। जो आज अपने बड़े रूप में बना हुआ है । लश्कर में कसेरा ओली में स्थित राजा जी का चैत्यालय भी इसी काल का बना हुआ है। इस प्रकार इस काल में महाराजा दौलतराव अंग्रेजों के सहयोग से राज्य कार्य चलाते रहे। सन् 1827 में इनका स्वर्गवास हो गया । इनके पश्चात उनकी प्रिय पत्नी ने एक 11 वर्षीय नावालिग लड़के को गोद लिया और उसका नाम जनकोजीराव रखा। उनके युवा होने तक महारानी ने ही राज्य संचालन का कार्य किया । युवा होने पर उन्होंने स्वयं शासन का भार संभाल लिया इनके काल में कोई विशेष घटना घटित नहीं हुई । दिनांक 7 फरवरी 1843 ई. को अल्पायु में ही इनका स्वर्गवास हो गया । नया बाजार लश्कर में स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर और ग्वालियर नगर में स्थित गोकुलचन्द्र का मन्दिर इन्हीं के काल में निर्मित हुये थे। महाराजा जनकोजीराव के कैलाशवासी होने पर महारानी ताराबाई ने उनका पुत्र न होने के कारण एक 8 वर्षीय बालक को गोद लिया। उनका नाम जीवाजीराव सिंथिया रखा गया। महाराजा की नाबालिगी में कौन प्रवन्ध करे इस विषय को लेकर सरदारों में खूब झगड़े हुये अंग्रेजों ने मौके का फायदा उठाकर सन् 1845 में एक 6 सदस्यीय कौंसिल आफ रिजेन्सी कायम कर दी। 9 वर्ष तक राज्य का सारा प्रबंध इसी कौसिल ने किया। इस कौंसिल के शासनकाल में सन् 1848 में लश्कर में दानाओली में जैसवाल पंचायत द्वारा मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ 1 सन् 1854 में महाराजा के बालिग होने पर वे स्वयं अंग्रेजों के मार्गदर्शन में कार्य करने लगे 3 वर्ष पश्चात् Jain Education International ही सन् 1857 में भारत के राष्ट्रभक्त वीरों द्वारा स्वतन्त्रता संग्राम छेड़ दिया गया। महाराजा अंग्रेजों के परमभक्त थे । अतः इस अवसर को अंग्रेजों को प्रसन्न करने के लिये उपयुक्त समय मानकर उन्होंने अपनी भक्ति भावना का पूर्ण परिचय देने का संकल्प किया । परिणाम यह हुआ कि 28 मई को स्वतन्त्रता प्रेमी सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। उधर महाराजा अँग्रेजों की सुरक्षा का प्रबंध करने में जी जान लगाकर जुट गये । परन्तु समूह एक शक्ति होती है। 14 जून 1857 की रात्रि को कन्टिन्जेन्ट फौज ने भी राष्ट्रप्रेमियों के समर्थन में विद्रोह कर दिया। अनेकों अँग्रेज अफसर मौत के घाट उतार दिये गये । महाराजा ने अपनी भक्ति का परिचय देते हुये शेष सभी जीवित अंग्रेज पुरुषों को महिलाओं व बच्चों सहित आगरा पहुँचा दिया । दिनांक 28 मई सन् 1858 ई. को नाना पेशवा, तात्या टोपे और महारानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में स्वातंत्र्य वीरों की सेना राष्ट्रद्रोहियों को खूदती हुई ग्वालियर की छाती पर चढ़ आई और 1 जून से भयंकर रूप में युद्ध शुरू कर दिया । ग्वालियर के सारे राष्ट्रप्रेमी स्वातन्त्र वीरों ने उनका साथ दिया जिससे भयभीत होकर जियाजीराव युद्ध: स्थल से भाग खड़े हुये और अंग्रेजों की शरण में आगरा आ पहुँचे । इधर स्वातंत्र वीरों ने सभी शासकीय केन्द्रों पर कब्जा कर लिया और ग्वालियर पर अपने झंडे गाड दिये । गोरखी में स्थित शासकीय खजाने को लूट लिया गया। इस समय अमरचन्द्र वांठिया नामक एक जैन धर्मावलंबी महाराजा के खजांची थे। लूट के समय वे वहीं मौजूद थे । उन्होंने स्वातंत्र्य वीरों का कोई प्रतिकार नहीं किया । उन्होंने खुलकर लूट की और सारा खजाना लूट लिया। वीर पुत्रों का संरक्षण पा ग्वालि यर की भूमि निहाल हो उठी। परन्तु दूसरी ओर सर ह्य ू रोज ने वीरों से अनुपात में कई गुनी सेना लाकर उन्हें चारों ओर से पैर लिया। ३५८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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