Book Title: Gwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
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रात्रि भोजन कथा, रविवार व्रत कथा, चन्द्रनाथ चरित्र आदि 23 ग्रन्थ भी लिखे थे । ये सं. 1486 तक रहे ।
सम्वत् 1492 से पूर्व अग्रवाल वंशज साहू बेमसिंह के पुत्र साहू कमलसिंह ने 11 हाथ ऊँची आदिनाथ की एक विशाल मूर्ति का निर्माण कराया। इसके प्रतिष्ठोत्सव में राजा दूंगरसिंहजी ने शासन से पूरा सहयोग प्रदान किया और ताम्बूल आदि से उसका सम्मान किया। "
संवत् 1492 में साहू कमलसिंह ने कवि रईपू से "सम्मत गुण निधान" नामक ग्रन्थ की रचना करवाई जो भाद्रपद मास के पूर्णिमा के दिन समाप्त हुई। इस ग्रन्थ की रचना करने में कवि को 3 मास का समय लगा। इसके बाद कवि रई ने "नेमिनाथ चरित्र", "पार्श्वनाथ चरित्र" तथा "बलभद्र चरित्र" (रामायण) नामक ग्रन्थों की रचना की। सं. 1496 में रचे गये "सुकौशल चरित्र" नामक ग्रन्थों में इन ग्रन्थों की रचना का उल्लेख किया गया है। ये जाति के पदमावती पुरवाल थे । इनके पिता का नाम हरिसिंह सिंगी था ।
बलहर चरिउ में केवल हरिवंश पुराण (नेमिजन चरिउ ) के रचे जाने का भी उल्लेख मिलता है । हरिवंश पुराण में त्रिषष्टिशलाका चरित ( महापुराण ), मेधेश्वर चरित्र, यशोधर चरित्र, वृत्तसार और जीवंधर नामक 6 अन्य ग्रन्थों का भी उल्लेख किया गया है । ये सभी सं. 1496 से पूर्व के रचे गये हैं। सम्मईजिन
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चरित प्रशस्ति में मेघदवर चरित, त्रिषष्ठि महापुराण, सिद्धचक्रविधि, बलहद्द चरिउ, सुदर्शन चरित और धन्यकुमार चरित नामक ग्रन्थों का भी उल्लेख है । संभवतः ये सभी ग्रन्थ कवि रईघू ने सं. 1492 और 1496 के काल में लिखे हैं । इनमें एक और ग्रन्थ "आत्म संबोध काव्य" की 29 पत्रात्मक जीर्ण प्रति भी उपलब्ध है। 2" जो संवत् 1448 की लिखी हुई है । रईघू के काल में ग्वालियर में जैन धर्म एवं संस्कृति अत्यधिक सम्पन्न अवस्था में थी। डूंगरेन्द्रसिंह और कीर्तिसिंह के काल में गढ़ के नीचे नगर में बहुत से जैन मन्दिर बने थे । रईधू ने लिखा है कि- "नगर जैन मन्दिरों से विभूषित था और श्रावक दान-पूजा में निरत रहते थे । ........ " नैमिनाथ, चन्द्रप्रभु और वर्द्धमान के जैन मन्दिर थे और उनके पास बिहार भी बने थे।" स्वयं रई ऐसे ही बिहार में रहता था। अलवर और चौरासी मथुरा के जैन मन्दिरों में ग्वालियर के तौमरों के उल्लेख युक्त प्रतिमाएँ इन्हीं जैन मन्दिरों की हैं। इससे प्रतीत होता है कि कविवर रईघू दीर्घजीवी रहे होंगे। उपलब्ध ग्रन्थों से उनका रचनाकाल सं. 1448 से सं. 1525 तक का उपलब्ध होता है ।
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सं. 1497 में "परमात्म प्रकाश" ग्रन्थ की सटीक प्रति की रचना की गई । 27 इसी वर्ष पांडु पुराण भी अपभ्रंश भाषा में लिखा गया । सं. 1506 में घनपाल की " भविष्यदत्त पंचमी कथा" तथा सं. 1510 में " समय सार" नामक ग्रन्थों की प्रतिलिपि की गई ।128
- जो देवाहिदेव तित्यंकरु, आइणाहु तित्थोय सुहंकरु । तहु पडिमा दुग्गइ - निण्णासणि, जामिच्छत - गिरिद - सरासणि, जामहिरो- सोय दुहणासणि
संवत 1448 वर्षे फाल्गुण वदि 1 गुरौ दिने स्त्रावग लष्मण कम्मक्षय विनाशार्थ लिखितं । आमेर भण्डार जयपुर में अभी भी सुरक्षित है ।
यह अभी भी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है।
यह अभी भी कारंजा के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है ।
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