Book Title: Gwalior ke Sanskrutik Vikas me Jain Dham Author(s): Ravindra Malav Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 7
________________ थी।दवकण्ड के जैन मन्दिर के वि. सं. 1152 (सन किले से निकलकर मुसलमानों से युद्ध किया। युद्ध के 1095 ई.) के शिलालेख से ज्ञात होता है कि वहाँ लिये राजा को जाते देख रानियों ने कहाकाष्ठासंघ के महाचार्यवर्य श्री देवसेन के पादूका चिन्ह की पूजा होती थी। नरवर में भी वि. सं. 1314 ____ "पहले हमें जु जौहर पारी, (सन् 1257 ई.) से 1324 (सन् 1267 ई.) के तब तुम जूझो कन्थ सम्हारी' मूर्तिलेखों से युक्त सैकड़ों मूर्तियाँ नरवर में प्राप्त हुई हैं। यह कहकर 70 रानियां किले में आग में कूदकर जो कुछ भी ज्ञान उपलब्ध है उसके आधार पर यह बलिदान हो गई। आज भी इस जौहर की स्मृति में कहा जा सकता है कि यहाँ जैन धर्मावलंबियों के परिबार जौहरताल का नाम विख्यात है। उरवाई दरबाजे मात्र निवास ही नहीं करते थे वरन यहाँ जैनियों पर इस घटना का उल्लेख करनेवाला शिलालेख के संघ भी संचालित थे जिनमें संघाधिपति तथा अन्वय सन् 1805 ई. तक पाया गया है। इस युद्ध में राजा हुआ करते थे। इतना ही नहीं वे नियमित विद्यापीठ का भी अपने 15 साथियों के साथ काम आए तब कहीं भी संचालन करते थे। 15वीं शताब्दी में बनी मूर्तियों मुसलमान इस किले पर कदम रख पाये। इसके बाद से प्राप्त जानकारी से ये तथ्य पुनः परीक्षित होते हैं। सन् 1318 ई0 तक यह दुर्ग मुसलमानों के अधिकार में रहा। उन्होंने इसे राजकीय कैदखाने के रूप में प्रयोग सन् 1122 ई. में परिहारों ने इस वंश के अन्तिम किया। इस प्रकार ग्वालियर का यह प्रदेश 166 वर्षों राजा तेजकरण को निकाल दिया और स्वतः राजा बन तक लूट-खसोट और अत्याचार से आतंकित रहा। बैठे थे। परिहार वंश के कल 7 राआओं ने इस दर्ग पर राज्य किया। इस बीच में एक बार सन् 1196 ई. पर कभी किसी का शासन स्थायी नहीं रहा । जब में कुतुबुद्दीन ने ग्वालियर पर आक्रमण कर दुर्ग पर तैमूर लंग ने भारत के अन्दर ऊधम मचाया तो मुस्लिम अपना अधिकार स्थापित किया परन्तु उनके हाथों में सत्ता डांवाडोल हो गई और वीरसिंह तंवर, जो कि यह दुर्ग अधिक न रह सका और 16 वर्ष बाद सन् सन् 1375 ई में मुस्लिमों की ओर से किलेदार नियुक्त 12 में परिहारों ने पुनः दुर्ग को वापस ले लिया हआ था, ने अवसर पाकर दुश्मनों को परस्पर लड़ाक और सन 1232 तक अपने अधिकार में रखा । सन् बडी चतुराई के साथ इस किले पर अपना अधिकार कर 1232 में अल्तमश ने तत्कालीन परिहार शासक सारंग लिया। इसने सम्भवतः सन् 1380 ई. में अपना राज्य देव पर भारी फौज सहित आक्रमण किया और 11 स्थापित किया। यह बड़ा पराक्रमी और विवेकी तथा मास तक दुर्ग को घेरे रहा । अन्त में सारंगदेव ने स्वयं राजनीति में दक्ष शासक था। 13. ग्वालियर राज्य के अभिलेख, क. 241 14: वही, क्र. 58। 15. जात. श्रीवीरसिंहः सकलरि पुकुलवातनिर्धातपातो, वंशे श्रीतोमराणां निजविमलयशोख्यातदिक्चक्रवालः । दानाने विवेक भवति समता येन साकं नपाणां, के शामेषा कवीनां प्रभवति घिषणा वर्णने तद्गुणानां ।। -यशोधरचरित प्रशस्ति ३४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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