Book Title: Gurutattva Vinischaya Author(s): Yashovijay Gani, Chaturvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 8
________________ ४॥ आ स्थळे एक पादकी- होय एम पण कल्पना थइ शके. तेम छतां आ बीजी बात उपर अमे खास भार देता नथी. आ वात तो निर्णीत ज छे के पहेला 181 अने त्रीजा नंबरनी एम बे प्रतो उपाध्यायजीनी विद्यमानतामा ज लखायली छे. | आ स्थळे एक अगत्यनी बात कही लइए. ते ए के बीजा नंबरनी प्रतिना छेल्ला पानामा "पं. पुण्यविजय ग।" एवा अक्षरो छे. आ अक्षरो निर्विवादरीते उपाध्यायजीना छे. खंभातमांना नगीनदासना भंडारमा ज्ञानबिन्दुनी जे प्रति छ तेना अन्यना पानामा 18 पण ए ज अने एवा ज अक्षरो उपाध्यायजीना लिखित छे. आ उपरथी बे वात स्पष्ट थाय छे, पहेली ए के ए प्रतिओ उपाध्याय जीना वखतमा ज लखायली. अने बीजी ए के प्रतिओ लखाया पछी ग्रंथकार ज्यारे ज्यारे जेने ते प्रति भेट आपवा इच्छे त्यारे तेनुं नाम ते प्रतिना अंते ते पोते ज लखे. पं. पुण्यविजय ग० कोण हता तेनी गवेषणा करवी बाकी छे. पण ज्यारे उपाध्यायजी तेओने पोतानी कृतिओ भेट आपे छे तात्यारे ते कोइ योग्य अने खास करी विद्यारसिक होइ उपाध्यायजीना प्रीतिपात्र तो होवा ज जोइए. संस्करणनी विशेषता प्रस्तुत ग्रंथर्नु संस्करण जेम बने तेम शुद्ध करवानो यत्न तो कर्यो ज छे. पण तेमां अशुद्धिओ नथी| रही एम नथी. छतां तेनी विशेषता खास परिशिष्टोमां छे. आ संस्करणने अंते चार परिशिष्टो आप्यां छे. पहेला परिशिष्टमां मूळ है ग्रंथनी नवसो पांच आर्याओनो वर्णानुक्रमथी आदि भाग आपेलो छे. बीजा परिशिष्टमां पण अकारादि क्रमथी गद्य अने पद्यना आदि अंशो आपेला छे. आ गद्य अने पद्य प्रस्तुत ग्रंथनी टीकामा अवतरणतरीके जे उपाध्यायजीए ग्रंथांतरोमांथी लीधेला छे ते समजवां. त्रीजा परिशिष्टमां ग्रन्थोनां नामो आपेला छे के जेनो प्रमाणतरीके उपाध्यायजीए प्रस्तुत ग्रंथमा उपयोग कयों छे. आ परिशिष्ट RUSHKULARU MANGALORCAM-GCARNA ॥४॥ For Private & Personal Use Only Winery orPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 540