Book Title: Gurutattva Vinischaya
Author(s): Yashovijay Gani, Chaturvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 11
________________ अने कदाच आथी पण वधारे लांबे वखते पूर्ण थात तो पण आ ग्रंथने जे स्वरूप अपायुं छे ते तो न ज आपी शकात. उपर जे जे मुश्केलीओ टुंकामा सूचवी छे तेनो अंत ए मारा लघु शिष्यनी मददने ज आभारी छे. तेथी वाचको मारा परिश्रम करतां मारा सहायकना परिश्रमने ज वधारे कीमती गणे ए हुं मागी लउं . आ वात में एटला खातर लखी छे के संपादनना कर्तृत्वनो 8 भार वाचको केवळ मारा उपर ज न आरोपी ले. प्रस्तुत ग्रंथनो टुंक सार लखवा आदिमां अमने पंडितजी श्रीमान् सुखलालजी तरफथी घणी ज सहायता मळी छे ते माटे 5 आ स्थळे तेमना नामने अमे भूली शकता नथी. लेखक-मुनि चतुरविजय. KIRANSRRORISASARASINE Jansonematian For Private Personal use only wrancainelorery.org

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