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गर
परिचय.
ग्रन्थ
नाना मोटा ग्रंथो ज रच्या छे. छतां तेवा विषयोनी चर्चानो प्रसंग आवतां प्रस्तुत ग्रंथमां पण उपाध्यायजीनी लेखनी ते बाबत लखतां थोभी नथी. वस्तु एक ज होय, लखनार एक ज होय, पण एक ज वस्तुने प्रतिभाशाली लेखक ज्यारे ज्यारे लखे त्यारे त्यारे | तेमां नर्बु स्फुरण नवं तेज आन्या विना नथी रहेतुं. आ नियम प्रस्तुत ग्रंथमा अक्षरशः नजरे पडे छे. दाखला तरीके प्रसंगथी।
आवेल नय-प्रमाणादिनी चर्चा जुओ. उपाध्यायजीए नयना विषय उपर नयरहस्य, नयप्रदीप अने नयामृततरङ्गिणी नामनी टीका| युक्त नयोपदेश आदि ग्रन्थो लख्या छे. प्रमाण उपर प्रमारहस्य, जैनतर्कपरिभाषा आदि प्रौढ ग्रंथो लख्या छे. स्याद्वाद उपर स्याद्वा
दरहस्य, अनेकान्तव्यवस्था, अनेकान्तप्रवेश, स्याद्वादकल्पलता (शास्त्रवार्तासमुच्चयनी टीका) आदि ग्रंथो लख्या छे. हवे आ ज | विषयोने प्रसंग आवतां पाछा आ ग्रंथमां पण उपाध्यायजी फरी चर्चवा चूक्या नथी. आम जे विषयोना स्वतंत्र ग्रंथो लख्या होय, | प्रसंग आवतां ते विषयो उपर फरी अन्य ग्रन्थमा लखवु ए प्रथमदर्शने पुनरुक्ति के पिष्टपेषण जेवू जणाय खलं. पण जेम पुनरुक्ति
अलंकारशास्त्रमा दोष छतां अमुक प्रसंगोए गुणरूप मनायेली छे तेम प्रतिभासंपन्न लेखकोनी पुनरुक्ति ए दोषरूप नथी होती. तेमा विविधता, नवीन स्फुरण अने नवनवता होवाथी ते गुणरूप ज होय छे. उपाध्यायजीना नय, प्रमाण, स्याद्वाद आदि विषयो पर स्वतंत्र ग्रंथोमां तेनी ते वस्तु होवा छतां आ ग्रंथमा ते वस्तुविषे जे नवनवां स्फुरणो जोवामां आवे छे ते ज ते ते विषयना अभ्यासीने
ते ते विषयनी परिपूर्ण ज्ञानसामग्री पूरी पाडे छे. आ सिवाय संयमश्रेणि, पांच कुगुरु, पांच निग्रंथ आदि सैद्धान्तिक विषयो, अति18. विस्तीर्ण परिपूर्ण वर्णन पण आमाथी मळी शके छे. तेथी ते दृष्टिए पण आ ग्रंथतुं महत्त्व घणुं छे,
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