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है एकना अभावमां बीजानो सद्भाव होतो ज नथी. जो के आ बंने नय पोतपोतानी भूमिकामा प्रधान अने बीजानी भूमिकामा अप्र-16
धान होय छे. जेम के व्युत्थान (प्रवृत्ति) काळमां व्यवहारतुं प्राधान्य होय छे, एटले तेमां भावना, अनुप्रेक्षा आदि भाव होवा| पूछतां ध्यानरूप निश्चय नथी होतो; तेम ध्यानात्मक निश्चयदशामां पण व्युत्थानकालीन व्यवहार नथी होतो. छतां ते बन्ने पोतपो-18
ताना साध्यना निश्चित कारण छे ज. तात्पर्य ए छे के व्यवहार अने निश्चय पोतपोताना प्रदेशमा शुद्ध अने बळवान छे. एकबीजानीद | अपेक्षाए अशुद्ध के निर्बळ भले होय. पण तेथी तेनुं पोताना प्रदेशमां शुद्धत्व जतुं नथी.
| ए रीते निश्चयनयनो तात्त्विक अर्थ समजावी निश्चयसाथे व्यवहार केवी रीते गर्भित छे, ते स्पष्ट करी उपाध्यायजी उपर सूचहैवेल शंकाओनुं अनुक्रमे नीचे प्रमाणे समाधान करे छ| (क) भरतनो दाखलो आपी केवळनिश्चयवादीए एम कडं के व्यवहार विना पण फळ मळे छे. अने प्रसन्नचन्द्रनो दाखलो | आपी एम कडं के व्यवहार छतां फळ नथी पण मळतुं. पण आनो खुलासो ए छे के भरतने व्यवहार विना केवळज्ञानलाभ थयो एवी घटना मात्र कादाचित्क ज होय छे, सार्वत्रिक अने सार्वदिक नथी होती. छतां ए घटनामां पण व्यवहारनो अभाव ज छ एमट मानवाने कशु कारण नथी. ते घटनामा व्यवहार जोवा वर्तमान जन्म छोडी पूर्व जन्म तरफ दृष्टि दोडाववी पडशे. भरत जेवा महानुभावोए पूर्व जन्ममां कोई ने कोइ प्रकारना सद्व्यवहारना परिशीलनथी योग्य संस्कारो एवा मेळवेला, के जेने लीधे तेओने वर्त्तमान जन्ममा बाह्य व्यवहारना सेवन विना ज मात्र भावनाना निमित्तथी ज गुणोनी वृद्धि अने पुष्टि थतां केवळज्ञानलाभ थयो. केवळज्ञान जेवां विशिष्ट कार्योनां कारणो काइ वर्तमान जन्मनी मर्यादाथी ज नियत्रित नथी होता.
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