________________
टुंकामां
ग्रन्थ
वस्त.
॥१३॥
हेतु, स्वरूप अने अनुबंध ए त्रणेनो विचार पण तेओए प्रसंगे करी दीधो छ जे जाणवा जेवो छ
विशुद्ध क्रिया करता तेना कर्त्तानुं आळस दूर थाय छे, अने आळस दूर थवाथी तेनो सद्व्यवहार प्रत्येनो अणगमो पण चाल्यो जाय छे. तेम ज विशुद्ध क्रियामा मन लागवाथी अनेक अशुभ आलंबनों पण सामेथी खसी जाय छे. आ कारणथी एवी विशुद्ध क्रिया ज अनुभवात्मक ज्ञान अने आत्मस्थिरतारूप निश्चयनुं कारण छे.
आलंबन एकाग्र होवु ए निश्चयर्नु स्वरूप छे. कारण ज्ञानात्मक निश्चय मात्र भावमा ज ( तात्त्विक स्वरूपमा ज) प्रवर्ते छे. अने ध्यानादिप्रवृत्तिरूप निश्चय मात्र आत्माना ज विषयमा प्रवते छे. भी अनुबंध एटले उत्तरोत्तर शुभ परिणामना प्रवाहने टूटवा न देतां चालु राखवो ते. आ उपरांत पोतपोताना दर्शनना आग्रह है टू विनानी सहजमाध्यस्थ्यपरिणतिरूप समापत्ति, जे चंदनना सुगंध जेवी सर्वने हितावह होय छे. ते निश्चयर्नु ज परिणाम छे. सारांश
एछे, के जेम व्यवहार यथार्थज्ञानपूर्वक होवाने लीधे ज हेतु, स्वरूप अने अनुबंधथी शुद्ध होइ शके, तेम निश्चय पण सद्व्यवहारनोद विरोधी न होय तो ज हेतु, स्वरूप अने अनुबंधथी शुद्ध होइ शके.
जे व्यवहार पोताना प्रदेशमा शक्ति न गोपवतां तेनो दृढ पक्षपात राखी निश्चयर्नु बहुमान करे छे ते व्यवहार निश्चयनी 3 नजीक ज (निश्चयकार्यकारी ) छे. तेवी रीते निश्चयने बहाने शक्तिनुं गोपन करी व्यवहारनो बाध करवामां न आवे तो ज ते खरो निश्चय छे. कारण व्यावहारिक क्रियामां आळस करनार निश्चयतत्त्वनी नजीक जइ ज न शके. जेम दुध अने पाणी ए बे तत्त्व एवां मिश्रित छे के एकना अभावमा बीजानो अभाव नियमथी होय ज छे, तेम व्यवहार अने निश्चय ए बने परस्पर एवा मिश्रित छे के 18
ARCHASEANISABAR
Jain Hustle
For Private & Personal use only
wivijainelibrary.org