________________
टुंकामां ग्रंथतुं वस्तु.
माता कहे छे
छे. गुरुनी भांति आपेले. तेम
GROREGARDEOS
प्रथम उल्लास. * सौथी पहेला उपाध्यायजी गुरुर्नु माहात्म्य बतावतां कहे छे के गुरुनी शुद्धसामाचारीरूप आज्ञाने अनुसरवामां आवे तो *
मोक्ष सुद्धा प्राप्त थाय छे. गुरुना प्रसादथी आठे सिद्धिओ मळे छे. गुरुनी भक्तिथी ज विद्या फळे छे. तेम ज3 आ दुनियामा प्राणिओने गुरु विना बीजो कोई शरण नथी. जेम दयालु वैद्य बीमार प्राणिओने शांति आपे छे तेम कर्मज्वरथी पीडित प्राणिओने गुरु ज धर्मनी शांति अL छे. दीपक पोतानी दीप्तिने प्रभावे पोताने अने बीजा पदार्थोने प्रकाशे छे. तेम सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रयीना प्रभावे गुरु पोताना अने परना हृदयगत अंधकारने हरे छे.
त्यार बाद उपाध्यायजी गुरुकुलवासने प्रथम आचार (कर्तव्य ) तरीके सूचवे छे. तेओनी आ सूचना वैदिक संप्रदायना चार आश्रम पैकी प्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम साथे संकळायेल गुरुकुलवासनी प्रथा अने बोद्धसंप्रदायनी सामणेर दीक्षा साथे संकळायेल ब्रह्म-2 तुचर्य तथा गुरुकुलवासनी प्रथा- स्मरण करावे छे. ा नयदृष्टिकुशळ उपाध्यायजी जेम कोइ पण वस्तुनो विचार करवामां सर्वत्र पोतानी सूक्ष्म विवेकबुद्धिनो नयद्वारा उपयोग करे छे. तेम अत्रे पण गुरुथी प्राप्त थता फळनी मर्यादा नयदृष्टिए ज बतावतां कहे छे के-बाह्य आलंबननी विशेषताथी जे विशिष्ट फळ | नीपजे छे ते व्यवहारदृष्टिए, नहि के निश्चयदृष्टिए. निश्चयदृष्टिए तो फळनो आधार तेने मेळवनार आत्मानी योग्यता उपर छे. आ
ARABARASSA
त्या
For Private Personal Use Only
inte
wronw.iainelibrary.org