Book Title: Gurutattva Vinischaya Author(s): Yashovijay Gani, Chaturvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 4
________________ म्पादकी- ***FRASES उद्भवेल विचार साथे ज नंखायो. चतुर्मास पूर्ण थया पछी सौनी साथे हुँ घाटकोपर गयो अने त्यां मुनि श्रीवल्लभविजयजीना सदुपदेशथी तेनी छपामणी बदल आर्थिक मदद मळवार्नु पण वचन मळ्युं. १९७४ नुं चोमासु वडोदरा थयु. ते वखते छाणीना संघना भंडारमाथी प्रस्तुत ग्रंथनी बीजी प्रत सांपडी. पण ते वखते काइ | खास काम थयु नहि. १९७५ मां पवित्र क्षेत्र पालीताणा स्पर्शवानुं सौभाग्य प्राप्त थयुं. त्यां आव्या वाद सुरत श्रीमन्मोहनलालजीजैनश्वेतांबर ज्ञानभंडारमांनी प्रस्तुत ग्रंथनी एक त्रीजी हस्तलिखित प्रति मंगावी. आ रीते मुंबइ, छाणी अने सुरतना भंडारोनी त्रण हस्तलिखित प्रतिओ मळवाथी उत्साह वध्यो अने तेनुं परिणाम क्रियामां आव्यु. वडोदरा प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजीजैनशास्त्रसंग्रहमा पण एक आ ज ग्रंथनी हस्तलिखित प्रति हती जे श्रीमान् विजयसिद्धिसूरि महाराजनी प्रति उपरथी लखाववामा आवी हती. वडोदरानी ए प्रति मंगावी तेना उपर ज पूर्वोक्त त्रण प्रतिओमाथी पाठ पाठांतरो लइ लीधा. अने जे जे विशेषताओ |ए त्रण प्रतिओमा हती ते बधी वडोदरानी प्रतिउपर नोंधी लीधी. आ रीते प्राप्त थएल बधी प्रतिओना पाठ पाठान्तरो अने | विशेषताओगें एक प्रति उपर संकलन थयु. एटले तेना उपरथी प्रेसकॉपी करावी. आटलु काम सिद्धाचलमां संपन्न थयु. प्रेसकॉपी तपासी तेमा संस्कारो करवानुं काम भावनगरना १९७७ ना चोमासामां आरंभायु. अने साथे ज निर्णयसागर | जेवा जगत्प्रसिद्ध छापखानामां छपाववानी शरुआत करी. त्यारबाद वर्तमान संवत् १९८१ सुधी काम चालतां आजे आ ग्रंथ लांबे काळे पूर्ण थइ वाचकोना करकमलमा उपस्थित थाय छे. संशोधननी मुश्केलीओ-उपरना वक्तव्यथी तो सामान्य वाचको एम ज मानी ले के सात वरस धीरे धीरे काम चाल्यु Jain Education International For Private Personal use only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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