Book Title: Gunkittva Shodshika
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ऑगस्ट २०११ श्रीगुणविनयोपाध्यायैः शोधितं स्वशिष्य - पं० मतिकीर्त्तिकृतसहायकैर्निशीथचूर्णिद्वितीयखण्ड ।" शाहरुशाह भण्डार, जेसलमेर सं० १६७३ में प्रणीत 'प्रश्नोत्तरमालिका' में तथा सं० १६७४ में रचित 'लुम्पकमततमोदिनकर चौपाई' में गुणविनयजी ने मतिकीर्त्ति का सहायक के रूप में उल्लेख किया है । साहित्य-रचना : मतिकीर्ति-प्रणीत साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट है कि ये जैनागमों के प्रौढ विद्वान् थे, शास्त्रीय चर्चा में भी अग्रगण्य थे । व्याकरणशास्त्र के भी ये अच्छे अभ्यासी थे, और राजस्थानी भाषा पर भी इनका अच्छा अधिकार था । इनका साहित्य-सर्जन काल सं० १६७४ से १६९७ के मध्य का है । इनकी प्रणीत १२ कृतियाँ प्राप्त है, जो निम्नांकित है : १. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र - टीका - रचना संवत् १६९७, श्लोक परिमाण१८००० । इसकी एक मात्र प्रति जैनशास्त्र - माला - कार्यालय, लुधियाना में प्राप्त है । महोपाध्याय समयसुन्दरजी ने आपने 'कथाकोश' में इसका उद्धरण भी दिया है । सुना है कि कोई आचार्य महोदय इस टीका का सम्पादन कर रहे हैं ९७ I २. निर्युक्तिस्थापन इसका प्रसिद्ध नाम 'प्रश्नोत्तरशास्त्र' है । आवश्यकनिर्युक्ति के विसंवादपूर्ण वक्तव्यों को १० प्रश्नों के माध्यम से आगमों के प्रमाणों द्वारा सिद्ध करने का प्रयत्न किया है । इसकी रचना संवत् १६७६ के पश्चात् की गई है । ३. २१ प्रश्नोत्तर साधु लखमसी कृत २१ प्रश्नोत्तर के प्रत्युत्तर दिये गए हैं । गणिपंद का उल्लेख होने से रचना संवत् १६७६ के पश्चात् की गई है । I ४. भाष्यत्रय-बालावबोध रचना संवत् १६७७, स्थल जैसलमेर है । भणसाली - गोत्रीय शाहरुशाह, जैसलमेर के आग्रह से हुई है । ५. सम्यक्त्वकुलक-बालावबोध - इसकी संवत् १६५५ की लिखित प्रति प्राप्त है । -

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