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चोरी के कारण
चोरी करने का अन्तरंग कारण द्रव्यलोलुपता है । उत्तराध्ययन सूत्र के बत्तीसवें अध्ययन में कहा है
रूवे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तो व सत्तो न उवेइ तुढ़ि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले प्राययइ अदत्तं ।।
अर्थात्-- रूप की ओर जिसे सन्तोष नहीं है, यानी जो रूप और रूपवान के परिग्रह में अत्यन्त आसक्त हो गया है और जिसे इनके संग्रह की सदैव लालसा बनी रहती है, वह लोभ का मारा हुआ तथा असन्तोष के वेग से व्याकुल पुरुष दूसरे की चोरी करता है। . यही बात शब्द, रस, गन्ध और स्पर्श के लिये भी कही है। यानी जो इनका लोभी हो गया है, वह इनकी प्राप्ति के लिये चोरी करने में भी संकोच नहीं करता । मतलब यह कि विषयसुख का लोभ या आसक्ति ही चोरी का अन्तरंग कारण है। - चोरी के बाह्य कारणों में से पहिला कारण हैलोगों की बेकारी और भूखों मरना । बेकार लोग भूखों