Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 316
________________ चक्र से निकलने की इच्छा रखने वाले के लिए यह आवश्यक है कि इन्द्रिय द्वारा भोग्य पदार्थ रूप परिग्रह का त्याग करके अपरिग्रह-व्रत स्वीकार करे । इस प्रकार अपरिग्रह-व्रत को स्वीकार तथा उसका पालन करने से पारलौकिक लाभ, जन्म-मरण से छूटना और मोक्ष प्राप्त करना है । अपरिग्रह-व्रत स्वीकार करने पर जन्म-मरण का भय भी छूट जाता है और किसी प्रकार का कष्ट भी नहीं रहता है । इस व्रत को स्वीकार करने से इहलौकिक लाभ भी बहुत हैं । जो इस व्रत को स्वीकार करता है, उसकी ओर से संसार के समस्त प्राणी निर्भय हो जाते हैं और व्रत स्वीकार करने वाला भी सब तरह से निर्भय हो जाता है। फिर उसको किसी भी अोर से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता । उसको न तो राज-भय रहता है, न चोर-भय रहता है, न अग्नि रोग आदि किसी अन्य प्रकार का ही भय रहता है । उसके प्रति संसार के समस्त जीव विश्वास करते हैं और वह भी सबका विश्वास करता है तथा सब जीवों के प्रति समदृष्टि रखता है एवं सभी को अपना मित्र मानता है । उसके हृदय में शत्रु और मित्र का भेद नहीं रह जाता । लोगों में वह आदर का पात्र माना जाता है। उसके समीप किसी प्रकार की चिन्ता तो रहती ही नहीं है । संसार का ऐसा कोई पदार्थ नहीं है, जो कभी न छूटे । छोड़ने की इच्छा न रहने पर भी संसार के पदार्थ तो छूटते ही हैं । लेकिन यदि संसार के पदार्थों को इच्छा-पूर्वक छोड़ा जायगा तो दुःख भी न होगा तथा प्रशंसा भी होगी और

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