Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 352
________________ . (३३७ ) को नहीं करते । जिसने इच्छा की सीमा नहीं की है, वह कृत्याकृत्य का विचार नहीं रखता । उसका उद्देश्य तो केवल यह रहता है कि मेरी इच्छानुसार पदार्थ मिलें; फिर इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े। लेकिन जिसने इस व्रत को स्वीकार किया है, वह कृत्याकृत्य का ध्यान रखता है पौर अकृत्य कार्य कदापि नहीं करता । मतलब यह कि यह व्रत स्वीकार करने वाला अनेक अंशों में सुखी तथा पाप से बचा रहता है और उसके द्वारा धर्म-कार्य एवं शुभ-कार्य भी होते हैं। अशुभ कार्यों से प्रायः वह अलग हो जाता है । अपरिग्रह व्रत या इच्छा परिमाण व्रत का पालन वही कर सकता है, जो समस्त पदार्थों को तात्त्विक दृष्टि से देखता है, जिसने सादगी स्वीकार की है और लालसा को मिटा दिया है या कम कर दिया है । इच्छा परिमाण व्रत का पालन करने के लिए सादगी का होना आवश्यक है । जिसमें सादगी होगी, वही इच्छा-परिमाण-व्रत का पालन कर सकता है । सादगी न होने पर वस्तु की चाह होगी ही और इस कारण कभी न कभी व्रत भी भंग हो जायेगा । सादगी, अनशनादि तप से भी कठिन है। बहुत से लोग अनशन तप तो कर डालते हैं, लेकिन उनके लिए सादगी स्वीकार करना कठिन जान पड़ता है। परन्तु जब तक सादगी नहीं है, तब तक न तो अपरिग्रह व्रत का ही पालन हो सकता है, न परिग्रह-परिमाण व्रत का ही । इस व्रत का पालन तभी हो सकता है, जब अपनी आवश्यकताओं को बिल्कुल घटा दिया जावे ।

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