Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 354
________________ ( ३३६ ) कुण्डल तो देवप्रदत्त हैं, इसलिए व्रत मर्यादा से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है और ऐसा कहकर वह कुण्डलों को रख सकता था; लेकिन अरणक व्रत स्वीकार करने के उद्देश्य को और व्रत स्वीकार करते समय रखे गये अपने अधिकार की मर्यादा को अच्छी तरह जानता था तथा उस पर दृढ़ था, उसका उल्लंघन नहीं करना चाहता था । इसलिए उसने उन कुण्डलों को अपने पास नहीं रखा किन्तु दूसरों को दे दिया क्योंकि उसने व्रत में देव-प्रदत्त वस्तु लेने की मर्यादा नहीं रखी थी । इसी प्रकार जब स्त्री और बच्चों की सम्पत्ति अलग करने की मर्यादा नहीं रखी है, तब सम्पत्ति के बढ़ने पर बढ़ी हुई सम्पत्ति उनके नाम करके अपना व्रत सुरक्षित समझना अथवा बढ़ी हुई सम्पत्ति को न त्यागने के लिए और कोई उपाय निकालना, यह व्रत में कपट चलाना तथा धर्म को भी ठगना है। __ आनन्द श्रावक ने भगवान् के पास व्रत स्वीकार करते हुए यह मर्यादा की थी कि मैं बारह करोड़ सौनैया, चालीस हजार गायें और पांच सौ हल की भूमि से अधिक न रखूगा । यह मर्यादा करके वह अकर्मण्य बन कर नहीं बैठा था, किन्तु चौदह वर्ष तक-जब तक कि उसने ग्यारह प्रतिमाएं स्वीकार नहीं की-बार-बार व्यापार कृषि आदि में उद्योग करता रहा था । उसके चार करोड़ सौनया व्यापार में लगे हुए थे, पांच सौ हल की खेती होती थी और चालीस हजार गायें थीं। इन तीनों द्वारा एक ही वर्ष में सम्पत्ति की अत्यधिक वृद्धि हो सकती थी और हुई भी होगी, फिर भी यह उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि उसने वह बढ़ी हुई सम्पत्ति स्त्री पुत्र की बता कर अपने पास ही रख ली अथवा स्त्री पुत्र को दे

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