Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 356
________________ ( ३४१ ) करता था, उसके द्वारा या तो वह पहले ही कम लाभ लेता था, अथवा लाभ का अधिकांश ...अपने कार्यकर्ताओं को दे देता था। आज यदि कोई आदमी ऐसी दूकान खोले, जिसमें केवल वस्तु की लागत और दूकान आदि खर्च लेकर ही वस्तु का क्रय-विक्रय किया जाता हो, मुनाफा न लिया जाता हो, अथवा बहुत कम मुनाफा लिया जाता हो, तो जनता ऐसे दुकानदार को बहुत आदर की दृष्टि से देखे, उसे प्रामाणिक माने और उसकी तथा उसके धर्म की काफी प्रशंसा भी करे। हो सकता है, आनन्द भी ऐसा वाणिज्य करता हो। जो कुछ भी हो, यह स्पष्ट है कि आनन्द के यहां कृषि, गोपालन और वाणिज्य होता था, फिर भी उसने अपनी सम्पत्ति मर्यादा से अधिक नहीं होने दी थी । तात्पर्य यह है कि व्रत लेने के पश्चात् व्रत में कयट चलाना और किसी प्रकार का मार्ग निकालना अनुचित है। जिस भावुकता और सरलता से व्रत लिया है, वह भावुकता और सरलता अन्त तक रखनी चाहिए । जो इस रीति से व्रत का पालन करता है, उसी का व्रत निर्दोष, प्रशस्त एवं प्रशंसनीय है। - सम्पत्ति के लिए जीवन मत हारो। जीवन को सम्पत्ति के लिए मत समझो । सम्पत्ति पर जीवन न्यौछावर मत करो। सम्पत्ति के लिए धर्म को धता मत बताओ, किन्तुं यह विचार रखो कि हम धन को बड़ा न मानेंगे और दोनों में से किसी एक के जाने का समय आने पर, धन

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