Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 355
________________ ( ३४० ) दी अथवा अपनी सम्पत्ति का कोई भाग देकर स्त्री पुत्र को अलग कर दिया । यदि वह ऐसा करता तो अवश्य ही उसका व्रत भंग हो जाता क्योंकि उसने अपने व्रत में इस . प्रकार की मर्यादा नहीं रखी थी। अब यह प्रश्न होता है कि फिर वह अपनी बढ़ी हुई सम्पत्ति का क्या करता था ? चालीस हजार गायों के बच्चे भी बहुत होंगे, पांच सौ हल से अन्नादि भी बहुत होगा और चार करोड़ सौनया के व्यापार से भी बहत लाभ होता होगा । आनन्द श्रावक व्यय से बचे हुए उस धन का क्या उपयोग करता था, जिससे उसका व्रत भंग नहीं हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि आनन्द अपनी बढ़ी हई सम्पत्ति का क्या उपयोग करता था, इसका शास्त्र में कोई स्पष्ट वर्णन तो नहीं है, लेकिन शास्त्र में यह वर्णन तो है ही कि आनन्द श्रावक श्रमरण माहण को प्रतिलाभित करता हुमा विचरता था । श्रमरण का अर्थ साधु है और माहण का अर्थ ब्राह्मण या श्रावक है । आनन्द, श्रमण और माहण को उनके योग्य दान देता था । इसके सिवा शास्त्र में तंगिया नगरी आदि स्थानों के श्रावकों का वर्णन करते हए कहा गया है. कि उन श्रावकों के द्वार दान देने के लिए सदा ही खुले रहते थे। उनके यहां से कोई निराश नहीं जाता था। इस वर्णन के आधार पर यही कहा जा सकता है कि आनन्द श्रावक दानी था । इस कारण उसकी सम्पत्ति मर्यादा से अधिक नहीं होने पाती थी। इसके साथ यह भी कहा जा सकता है कि आनन्द श्रावक जो कृषि वाणिज्य आदि

Loading...

Page Navigation
1 ... 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362