Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 326
________________ . (३११) ही कार्य होगा जैसा कार्य पगड़ी पहने और धोती त्याग देने का हो सकता है। तात्पर्य यह कि शास्त्र में जिनकी आज्ञा दी गई है, उन वस्त्र पात्रादि धर्मोपकरणों को रखने के कारण निर्ग्रन्थ लोग परिग्रही नहीं कहे जा सकते । निर्ग्रन्थ होने पर भी किसी को कब परिग्रही कहा जा सकता है और निर्ग्रन्थ भी किस प्रकार परिग्रही हो जाता है, यह बात थोड़े में बताई जाती है । . बहत से लोग अपरिग्रह-व्रत स्वीकार कर और संसार के स्थूल पदार्थों का ममत्व त्याग कर भी, फिर परिग्रह में पड़ जाते हैं । वे स्थूल पदार्थों का ममत्व तो छोड़ देते हैं लेकिन उनके हृदय में मान-बड़ाई आदि की चाल बनी रहती है, अथवा बढ़ जाती है । कहावत भी है - कंचन तजिबो सरल है, सरल तिरिया को नेह । मान बड़ाई इर्षा, दुर्लभ तजिबो येह ॥ अर्थात् - कनक - कामिनी को छोड़ना कठिन नहीं है, लेकिन मान-बड़ाई की चाह और ईा को त्यागना बहुत ही कठिन है। संसार में कनक ( सोना ) त्यागना बहुत ही कठिन माना जाता है । यद्यपि सोना खाने या शीत, ताप, वर्षा से बचने के काम का पदार्थ नहीं है, न उसमें गन्ध ही है फिर भी वह बहुत मोहक पदार्थ है और इसका एकमात्र कारण यही है कि आज विनिमय (लेनदेन या बदला-बदली) सोने

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