Book Title: Gruhastha Dharm Part 02
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 342
________________ ( ३२७ ) यदि उसने किसी अंश में परिग्रह का त्याग किया है और इच्छा को कम कर लिया है, तो उतने अंश में वह भी कष्ट से छूट जाता है, नीच गति में जन्म लेने से बच जाता है तथा मोक्ष मार्ग का पथिक हो जाता है। जिसने परिग्रह का परिमाण कर लिया है, सांसारिक पदार्थों को सर्वथा न त्याग सकने पर भी उनमें लिप्त नहीं रहता, किन्तु जल में कमल की तरह अलिप्त रहता है, वह कभी-कभी तो भाव चारित्र पाकर उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लेता है और कभीकभी सात आठ भव के अन्तर से मुक्त होता है । उसको अव्रत की क्रिया नहीं लगती, इस कारण वह नरक तिर्यक् गति में नहीं जाता। ___ मोक्ष प्राप्ति अप्राप्ति का कारण सांसारिक पदार्थों का पास में होना या न होना नहीं है, किन्तु ममत्व का होना या न होना ही है । इसलिए चाहे परिग्रह का सर्वथा त्याग न हो, केवल इच्छा परिमारण व्रत ही लिया गया हो, फिर भी यदि शेष परिग्रह में जल में कमल की तरह अलिप्त रहता है, तो वह उसी भव में मोक्ष का अधिकारी हो सकता है। इसके विरुद्ध चाहे अपरिग्रह व्रत स्वीकार भी किया हो, पर इच्छा-मूर्छा न मिटी हो, तो वह संसार में पुनः पुनः जन्म-मरण करता है और नरक तिर्यक् गति में भी जाता है। पहले यह बताया जा चुका है कि इच्छा अनन्त है, उसका अन्त नहीं है। जिसमें ऐसी इच्छा विद्यमान है, उसके परिग्रह का भी अन्त नहीं है । ऐसा व्यक्ति महान् परिग्रही है । उसे महान् परिग्रह की ही क्रिया लगती है ।

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