Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 9
________________ विषय-सूची له ८०४ . ८०७ ८०८ ८०८ GK00000 به भोगभूमिमें लेश्या ७२० पुद्गलका लक्षण ८०३ गुणस्थानोंमें लेश्या ७२५ परमाणुका स्वरूप ८०४ देवोंमें लेश्या छह द्रव्योंका लक्षण अशुभ लेश्यावालोंकी संख्या ७२८ कालद्रव्यका स्वरूप ८०५ शुभ लेश्यावालोंकी संख्या ७३१ अमूर्त द्रव्योंमें परिणमन कैसे लेश्यावालोंका क्षेत्र ७३५ पर्यायका काल उपपाद क्षेत्रानयन ७४६ समय और प्रदेशका स्वरूप शुक्ललेश्याका क्षेत्र ७५८ आवली, उच्छवास, स्तोक और लवका स्वरूप ८०९ अशुभ लेश्याओंका स्पर्शन ७६० नाली,मुहूर्त और भिन्न मुहूर्तका स्वरूप ८१० तेजोलेश्याका स्पर्शन लानेके लिए गणितकी व्यवहारकाल मनुष्यलोकमें ८११ प्रक्रिया अतीतकालका प्रमाण सब द्वीप-समुद्रोंका प्रमाण ७६८ वर्तमानकालका प्रमाण एक योजनके अंगुल भाविकालका प्रमाण राजू का प्रमाण ७७१ छह द्रव्योंका अवस्थानकाल पद्म लेश्यावालोंका स्पर्शन ७७६ छह द्रव्योंका अवस्थान क्षेत्र शुक्ल लेश्यावालोंका स्पर्शन ७७७ पुद्गल द्रव्य और कालाणुके प्रदेश छह लेश्याओंका काल ७७९ लोकाकाश और अलोकाकाश ८१७ , ,, का अन्तर ७८० द्रव्योंकी संख्या ८१७ लेश्यारहित जीव ७८५ प्रदेशके तीन प्रकार चल, अचल चलाचल १६. भव्यमार्गणाधिकार ७८६-८०० पुद्गल वर्गणाके तेईस भेद भव्य और अभव्य जीव वर्गणाओंका स्वरूप जो भव्य भी नहीं और अभव्य भी नहीं वर्गणाओंमें जघन्य-उत्कृष्ट भेद ८३८ अभव्य और भव्य जीवोंकी संख्या ७८७ पुद्गल द्रव्यके छह भेद ८४६ नोकर्म द्रव्य परिवर्तन ७८८ स्कन्ध, देश और प्रदेश ८४७ कर्म द्रव्य परिवर्तन ७९० द्रव्योंका उपकार स्वक्षेत्र परिवर्तन ७९३ जीव और पुद्गलका उपकार परक्षेत्र परिवर्तन ७९३ कर्म पौद्गलिक है ८५० काल परिवर्तन ७९४ वचन अमूर्तिक नहीं है भव परिवर्तन ७९५ मनके पृथक् द्रव्य और परमाणुरूप होनेका भाव परिवर्तन ७९६ निराकरण ८५२ पाँच ग्राह्य वर्गणाओंका कार्य ८५४ १७. सम्यक्त्व मार्गणाधिकार ८०१-८९१ परमाणुओंके बन्धका कारण ८५४ सम्यक्त्वका लक्षण तथा उसके नियम ८५६ सम्यग्दर्शनके दो भेद ८०१ पाँच अस्तिकाय द्रव्य, अर्थ और तत्त्व नाम क्यों ? ८०२ नौ पदार्थ छह द्रव्यों के अधिकार ८०२ गुणस्थानोंमें जीवसंख्या ८६२ छह द्रव्योंके नामादि ८०३ उपशम श्रेणिमें जीवसंख्या ८६४ V Vvv به به له ७८६ ८४८ ८५० ८५१ ८०१ ८६० ८६१ کن کن کن مک کن Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 612