Book Title: Geeta Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 9
________________ अपनी दृष्टि परिलक्षित होती है। गीता के लगभग सात सौ श्लोकों में से केवल उन्हीं को चुना गया है जो उसके मूलवर्ती दार्शनिक चिन्तन का प्रतिनिधित्व करते हैं । श्लोकों का यह चयन अपने आप में डॉ. सोगाणी की एक उपलब्धि है। गीता के सारभूत पद्यों का ऐसा चयन शायद ही किसी ने किया हो। चयन के पश्चात् दूसरा कार्य अनुवाद का था। इस क्षेत्र में भी डॉ. सोगाणी ने अपनी मौलिकता की छाप अंकित की है। गीता पर सैकड़ों टीकाएँ, व्याख्याएँ और विवेचनाएँ विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। अनुवाद भी अनगिनत हुए हैं। पर गीता-चयनिका के लेखक ने उन सब अनुवादों और व्याख्याओं को परे रख कर अपनी स्वतंत्र मति और दृष्टि का उपयोग किया है। यही कारण है कि उनका अनुवाद अन्य अनुवादों से अलग है। उन्होंने गीता के शब्दों का मर्म पकड़ने की चेष्टा की है। शब्दों के प्रचलित व प्रसिद्ध अर्थों को प्रामाणिक न मानकर उन्होंने प्रत्येक शब्द की धातु या प्रकृति के मूल अर्थ का सन्धान करते हुए स्वतंत्र रीति से अर्थनिर्णय किया है। एक विशेष बात यह है कि अनुवाद में श्लोकों की मूल अभिव्यक्ति की यथासंभव रक्षा की गयी है; लेखक ने अपनी ओर से मूल वाक्य शैली में परिवर्तन का परिहार किया है। जहाँ भी मूल की शब्दावली से बात स्पष्ट नहीं होती वहाँ कोष्ठकों में अर्थ के स्पष्टीकरण के लिए अपनी ओर से शब्द बढ़ाये गये हैं। इस प्रकार लेखक ने अनुवादक के धर्म का कड़ाई से पालन (IV) . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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