Book Title: Geeta Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 11
________________ की भी चर्चा आयी है किन्तु अनुभव की भूमिका पर कर्मयोगी के समकक्ष होते हुए भी कर्मों का परित्याग कर देने से वह लोक के लिए उतना उपयोगी नहीं है। लेखक के अनुसार गीता की विचारधारा हमारे आज के समाज की मानसिक अशान्ति, असन्तोष, तनाव और नैतिक विघटन को रोकने में पूर्णतया समर्थ है। डॉ. सोगाणी ने गीता-चयनिका के माध्यम से गीता को सामान्यजन तक पहुँचाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। साथ ही विद्वानों और विद्यार्थियों के लिए भी यह कृति अतीव उपादेय है। मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि प्राचीन भारत के आध्यात्मिक वाङ्मय के दीप्तिमान् रत्नों को विभिन्न चयनिकाओं में सजाकर वे आज के दिग्भ्रांत समाज में नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की जिस उदात्त चेतना को जगाना चाहते हैं वह इनके माध्यम से अवश्य जाग्रत व समृद्ध होगी। मेरी हार्दिक कामना है कि एक मनीषी कर्मयोगी के रूप में वे लोक-कल्याण की जिस साधना में संलग्न हैं वह उत्तरोत्तर सशक्त और फलवती हो। डॉ० मूलचन्द पाठक प्रोफेसर, संस्कृत विभाग सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर (राजस्थान) (VI) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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